मंगलवार, 11 जून 2019
बुधवार, 28 मार्च 2018
आजु समाज किए अतेक बिमार छै
दुमुहा साप सन सभक किरदार छै
जुनि भेट्त कियो एहि ठाँम जेहन्दार
सभक सभ अगबे अगती कए सरदार छै
जुनि पुछियौ ने हिन्का स हिनक इमान
हिनक रक्त नलि मे प्रवाहित भ्रष्टाचार छै
चोर कए चोर कहनैयो बात बड खराब छै
चोरियो केनाए आब समानित अधिकार छै
भ्रष्टाचार क पक्षपोषण मे ओहो अछी लागल
प्रतिनिधि आ कि सरकार सब के सब बिमार छै
जुनि हाथ पैर हाथ धरी निरास बैसु बाबु
सब रोग क कुनु ने कुनु जरुर उपचार छै
सब मिलजुलि दिय भ्रस्टाचार क जडि उपारि
सभ्य समाज लेल सभ्यता के सरोकार छै
By@ prabhat punam
गीत @प्रभात राय भट्ट
नयन खोजए मोर पिया कए दुलार
कि आजु करबै हम सोलहो श्रृङ्गार
ऎसगर घर आङन रहि रहि मुह दुसैय
पिया जि के बाट तकैत बैसल छि द्वार
नैयन खोजए मोर पिया कए दुलार
कि आजु करबै हम सोलहो श्रृङ्गार
सेज पलङिया सेहो दैय उलहन उपराग
विरह जिन्दगी क दुख अछी हजार
नयन खोजए मोर पिया जि कए दुलार
कि आजु करबै हम सोलहो श्रृङ्गार
ऎना कंघि टीकुलि सेनुर आर चुरी कङन
अछी पिया जि कए स्न्नेहक इन्तजार
नयन खोजए मोर पिया जि कए दुलार
कि आजु करबै हम सोलहो श्रृङ्गार
स्वपन देख्लहु राती पिया गाबैए पराती
भोरुकबा किरणया कहि करैय प्यार
नयन खोजए मोर पिया जि कए दुलार
कि आजु करबै हम सोलहो श्रृङ्गार
सोमवार, 25 दिसंबर 2017
|| जे छल सपना ||
सुन - सुन उगना ,
कंठ सुखल मोर जलक बिना |
सुन - सुन उगना ||
कंठ सुखल -----
नञि अच्छी घर कतौ !
नञि अंगना
नञि अछि पोखैर कतौ
नञि झरना |
सुन - सुन उगना ||
कंठ सुखल -----
अतबे सुनैत जे
चलल उगना
झट दय जटा सँ
लेलक झरना |
सुन - सुन उगना ||
कंठ सुखल -----
निर्मल जल सरि के
केलनि वर्णा |
कह - कह कतय सँ
लय लें उगना ||
सुन - सुन उगना ||
कंठ सुखल --
अतबे सुनैत फँसी गेल उगना
"रमण " दिगम्बर जे
छल सपना |
सुन - सुन उगना ||
कंठ सुखल -----
शुक्रवार, 17 नवंबर 2017
माना कि राजेन्द्र महतो में अहंकार है
जातिवाद का भी थोडी सी प्रचार है
बोल्ने की तजुरबा भी थोडी सी लाचार है
स्वर्थलोलुप्ता की भी चतुर आगार है
परन्तु इस मानविय स्वभाव को
अगर हम नजर अन्दाज करदे ।।
तो राजेन्द्र में एक अद्भुत संचार है
अपने मिटी मधेस के लिए पहरेदार है
अधिकार कि लड़ाई उनके लिए त्योहार है
तानाशाह खस शाशको के लिए ललकार है
मधेस मुद्दों के लिए सदैव वफादार है
मधेस आंदोलन की चाणक्य किरदार है
मधेश बाद के लिए प्रबल विचार है
मधेस के सत्रू हेतु प्रचण्ड प्रहार है
वीर योद्धा की भांति जुनून सबार है
मधेस के लिए मर मिटने को तैयार है
इस लिए इस बार छाता छाप का प्रचार है
और हर मधेसी को राजेन्द्र महतो स्वीकार है ।
रचनाकार प्रभात पूनम
शनिवार, 8 जुलाई 2017
हनुमंत - पचीसी
|| हनुमंत - पचीसी ||
ग्रह गोचर सं परेसान त अहि हनुमंत - पचीसी के ११ बार पाठ जरूर करि ---
शील नेह निधि , विद्या वारिध
काल कुचक्र कहाँ छी ।
मार्तण्ड तम रिपु सूचि सागर
शत दल स्वक्ष अहाँ छी ॥
कुण्डल कणक , सुशोभित काने
वर कच कुंचित अनमोल ।
अरुण तिलक भाल मुख रंजित
पाँड़डिए अधर कपोल ॥
अतुलित बल, अगणित गुण गरिमा
नीति विज्ञानक सागर ।
कनक गदा भुज बज्र विराजय
आभा कोटि प्रभाकर ॥
लाल लंगोटा , ललित अछि कटी
उन्नत उर अविकारी ।
वर बिस भुज रावण- अहिरावण
सब पर भयलहुँ भारी ॥
दीन मलीने पतित पुकारल
अपन जानि दुख हेरल ।
"रमण " कथा ब्यथा के बुझित हूँ
यौ कपि किया अवडेरल
-:-
-:-
|| दोहा ||
संकट शोक निकंदनहि , दुष्ट दलन हनुमान |
अविलम्बही दुख दूर करू ,बीच भॅवर में प्राण ||
|| चौपाइ ||
जन्में रावणक चालि उदंड |
यतन कुटिल मति चल प्रचंड ||
बसल जकर चित नित पर नारि |
जत शिव पुजल,गेल जग हारि ||
रंग - विरंग चारु परकोट |
गरिमा राजमहल केर छोट ||
बचन कठोरे कहल भवानी |
लीखल भाल वृथा नञि वाणी ||
रेखा लखन जखन सिय पार |
यतन कुटिल मति चल प्रचंड ||
बसल जकर चित नित पर नारि |
जत शिव पुजल,गेल जग हारि ||
रंग - विरंग चारु परकोट |
गरिमा राजमहल केर छोट ||
बचन कठोरे कहल भवानी |
लीखल भाल वृथा नञि वाणी ||
रेखा लखन जखन सिय पार |
वर विपदा केर टूटल पहार ||
तीरे तरकस वर धनुषही हाथ |
रने - वने व्याकुल रघुनाथ ||
मन मदान्ध मति गति सूचि राख |
नत सीतेहि, अनुचित जूनि भाष ||
झामरे - झुर नयन जल - धार |
रचल केहन विधि सीय लिलार ||
मम जीवनहि हे नाथ अजूर |
नञि विधि लिखल मनोरथ पुर ||
पवन पूत कपि नाथे गोहारि |
तोरी बंदि लंका पगु धरि ||
रचलक जेहने ओहन कपार |
दसमुख जीवन भेल बेकार ||
रचि चतुरानन सभे अनुकूल |
भंग - अंग , भेल डुमरिक फूल ||
गालक जोरगर करमक छोट |
विपत्ति काल संग नञि एकगोट ||
हाथ - हाथ लंका जरी गेल |
रहि गेल वैह , धरम - पथ गेल ||
अंजनि पूत केशरिक नंदन |
शंकर सुवन जगत दुख भंजन ||
अतिमहा अतिलघु बहु रूप |
जय बजरंगी विकटे स्वरूप ||
कोटि सूर्य सम ओज प्रकश |
रोम - रोम ग्रह मंगल वास ||
तारावलि जते तत बुधि ज्ञान |
पूँछे - भुजंग ललित हनुमान ||
महाकाय बलमहा महासुख |
महाबाहु नदमहा कालमुख ||
एकानन कपी गगन विहारी |
यौ पंचानन मंगल कारी ||
सप्तानान कपी बहु दुख मोचन |
दिव्य दरश वर ब्याकुल लोचन ||
रूप एकादस बिकटे विशाल |
अहाँ जतय के ठोकत ताल ||
अगिन बरुण यम इन्द्राहि जतेक |
अजर - अमर वर देलनि अनेक ||
सकल जानि हषि सीय भेल |
सुदिन आयल दुर्दिन दिन गेल ||
सपत गदा केर अछि कपि राज |
एहि निर्वल केर करियौ काज ||
|| दोहा ||
जे जपथि हनुमंत पचीसी
सदय जोरि जुग पाणी |
शोक ताप संताप दुख
दूर करथि निज जानि ||
-;-
रचल केहन विधि सीय लिलार ||
मम जीवनहि हे नाथ अजूर |
नञि विधि लिखल मनोरथ पुर ||
पवन पूत कपि नाथे गोहारि |
तोरी बंदि लंका पगु धरि ||
रचलक जेहने ओहन कपार |
दसमुख जीवन भेल बेकार ||
रचि चतुरानन सभे अनुकूल |
भंग - अंग , भेल डुमरिक फूल ||
गालक जोरगर करमक छोट |
विपत्ति काल संग नञि एकगोट ||
हाथ - हाथ लंका जरी गेल |
रहि गेल वैह , धरम - पथ गेल ||
अंजनि पूत केशरिक नंदन |
शंकर सुवन जगत दुख भंजन ||
अतिमहा अतिलघु बहु रूप |
जय बजरंगी विकटे स्वरूप ||
कोटि सूर्य सम ओज प्रकश |
रोम - रोम ग्रह मंगल वास ||
तारावलि जते तत बुधि ज्ञान |
पूँछे - भुजंग ललित हनुमान ||
महाकाय बलमहा महासुख |
महाबाहु नदमहा कालमुख ||
एकानन कपी गगन विहारी |
यौ पंचानन मंगल कारी ||
सप्तानान कपी बहु दुख मोचन |
दिव्य दरश वर ब्याकुल लोचन ||
रूप एकादस बिकटे विशाल |
अहाँ जतय के ठोकत ताल ||
अगिन बरुण यम इन्द्राहि जतेक |
अजर - अमर वर देलनि अनेक ||
सकल जानि हषि सीय भेल |
सुदिन आयल दुर्दिन दिन गेल ||
सपत गदा केर अछि कपि राज |
एहि निर्वल केर करियौ काज ||
|| दोहा ||
जे जपथि हनुमंत पचीसी
सदय जोरि जुग पाणी |
शोक ताप संताप दुख
दूर करथि निज जानि ||
-;-
रचित -
रेवती रमण झा " रमण "
ग्राम - पोस्ट - जोगियारा पतोर
आनन्दपुर , दरभंगा ,मिथिला
मो 09997313751
सोमवार, 26 जून 2017
अपन गाम अपन बात: मैथिली - हनुमान चालीसा
अपन गाम अपन बात: मैथिली - हनुमान चालीसा: || मैथिली - हनुमान चालीसा || लेखक - रेवती रमण झा " रमण " || दोहा || गौरी नन्द गणेश जी , व...
सोमवार, 3 अप्रैल 2017
मैथिलि - हनुमान चालिसा ,हनुमान जयंती के मंगल शुभकामना
|| मैथिलि - हनुमान चालिसा ||
लेखक - रेवती रमण झा " रमण "
|| दोहा ||
गौरी नन्द गणेश जी , वक्र तुण्ड महाकाय ।
विघन हरण मंगल कारन , सदिखन रहू सहाय ॥
बंदउ शत - शात गुरु चरन , सरसिज सुयश पराग ।
राम लखन श्री जानकी , दीय भक्ति अनुराग । ।
|| चौपाइ ||
जय हनुमंत दीन हितकारी ।
यश वर देथि नाथ धनु धारी ॥
श्री करुणा निधान मन बसिया ।
बजरंगी रामहि धुन रसिया ॥
जय कपिराज सकल गुण सागर ।
रंग सिन्दुरिया सब गुन आगर ॥
गरिमा गुणक विभीषण जानल ।
बहुत रास गुण ज्ञान बखानल ॥
लीला कियो जानि नयि पौलक ।
की कवि कोविद जत गुण गौलक ॥
नारद - शारद मुनि सनकादिक ।
चहुँ दिगपाल जमहूँ ब्रह्मादिक ॥
लाल ध्वजा तन लाल लंगोटा ।
लाल देह भुज लालहि सोंटा ॥
कांधे जनेऊ रूप विशाल ।
कुण्डल कान केस धुँधराल ॥
एकानन कपि स्वर्ण सुमेरु ।
यौ पञ्चानन दुरमति फेरु ।।
सप्तानन गुण शीलहि निधान ।
विद्या वारिध वर ज्ञान सुजान ॥
अंजनि सूत सुनू पवन कुमार ।
केशरी कंत रूद्र अवतार ॥
अतुल भुजा बल ज्ञान अतुल अइ ।
आलसक जीवन नञि एक पल अइ ॥
दुइ हजार योजन पर दिनकर ।
दुर्गम दुसह बाट अछि जिनकर ॥
निगलि गेलहुँ रवि मधु फल जानि ।
बाल चरित के लीखत बखानि ॥
चहुँ दिस त्रिभुवन भेल अन्हार ।
जल , थल , नभचर सबहि बेकार ॥
दैवे निहोरा सँ रवि त्यागल ।
पल में पलटि अन्हरिया भागल ॥
अक्षय कुमार के मारि गिरेलहुं ।
लंका में हरकंप मचयलहूँ ॥
बालिए अनुज अनुग्रह केलहु ।
ब्राहमण रुपे राम मिलयलहुँ ॥
युग चारि परताप उजागर ।
शंकर स्वयंम दया के सागर ॥
सूक्षम बिकट आ भीम रूप धारि ।
नैहि अगुतेलोहूँ राम काज करि ॥
मूर्छित लखन बूटी जा लयलहुँ ।
उर्मिला पति प्राण बचेलहुँ ॥
कहलनि राम उरिंग नञि तोर ।
तू तउ भाई भरत सन मोर ॥
अतबे कहि द्रग बिन्दू बहाय ।
करुणा निधि , करुणा चित लाय ॥
जय जय जय बजरंग अड़ंगी ।
अडिंग ,अभेद , अजीत , अखंडी ॥
कपि के सिर पर धनुधर हाथहि ।
राम रसायन सदिखन साथहि ॥
आठो सिद्धि नो निधि वर दान ।
सीय मुदित चित देल हनुमान ॥
संकट कोन ने टरै अहाँ सँ ।
के बलवीर ने डरै अहाँ सँ ॥
अधम उदोहरन , सजनक संग ।
निर्मल - सुरसरि जीवन तरंग ॥
दारुण - दुख दारिद्र् भय मोचन ।
बाटे जोहि थकित दुहू लोचन ॥
यंत्र - मंत्र सब तन्त्र अहीं छी ।
परमा नंद स्वतन्त्र अहीं छी ॥
रामक काजे सदिखन आतुर ।
सीता जोहि गेलहुँ लंकापुर ॥
विटप अशोक शोक बिच जाय ।
सिय दुख सुनल कान लगाय ॥
वो छथि जतय , अतय बैदेही ।
जानू कपीस प्राण बिन देही ॥
सीता ब्यथा कथा सुनि कान ।
मूर्छित अहूँ भेलहुँ हनुमान ॥
अरे दशानन एलो काल ।
कहि बजरंगी ठोकलहुँ ताल ॥
छल दशानन मति के आन्हर ।
बुझलक तुच्छ अहाँ के वानर ॥
उछलि कूदी कपि लंका जारल ।
रावणक सब मनोबल मारल ॥
हा - हा कार मचल लंका में ।
एकहि टा घर बचल लंका में ॥
कतेक कहू कपि की - की कैल ।
रामजीक काज सब सलटैल ॥
कुमति के काल सुमति सुख सागर ।
रमण ' भक्ति चित करू उजागर ॥
|| दोहा ||
|| दोहा ||
चंचल कपि कृपा करू , मिलि सिया अवध नरेश ।
अनुदिन अपनों अनुग्रह , देबइ तिरहुत देश ॥
सप्त कोटि महामन्त्रे , अभि मंत्रित वरदान ।
बिपतिक परल पहाड़ इ , सिघ्र हरु हनुमान ॥
|| 2 ||
॥ दुख - मोचन हनुमान ॥
जगत जनैया , यो बजरंगी ।
अहाँ छी दुख बिपति के संगी
मान चित अपमान त्यागि कउ ,
सदिखन कयलहुँ रामक काज ।
संत सुग्रीव विभीषण जी के,
अहाँ , बुद्धिक बल सँ देलों राज ॥
नीति निपुन कपि कैल मंत्रना
यौ सुग्रीव अहाँ कउ संगी
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख --
वन अशोक, शोकहि बिच सीता
बुझि ब्यथा , मूर्छित मन भेल ।
विह्बल चित विश्वास जगा कउ
जानकी राम मुद्रिका देल ॥
लागल भूख मधु र फल खयलो हूँ
लंका जरलों यौ बजरंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख--
वर अहिरावण राम लखन कउ
बलि प्रदान लउ गेल पताल ।
बंदि प्रभू अविलम्ब छुरा कउ
बजरंगी कउ देलौ कमाल ॥
बज्र गदा भुज बज्र जाहि तन
कत योद्धा मरि गेल फिरंगी ,
जगत जनैया ---अहाँ छी दुख -
वर शक्ति वाण उर जखन लखन ,
लगि मूर्छित धरा परल निष्प्राण ।
वैध सुषेन बूटी जा आनल ,
पल में पलटि बचयलहऊ प्राण ॥
संकट मोचन दयाक सागर ,
नाम अनेक , रूप बहुरंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख --
नाग फास में बाँधी दशानन ,
राम सहित योद्धा दालकउ ।
गरुड़ राज कउ आनी पवन सुत ,
कइल चूर रावण बल कउ
जपय प्रभाते नाम अहाँ के ,
तकरा जीवन में नञि तंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख --
ज्ञानक सागर , गुण के आगर ,
शंकर स्वयम काल के काल ।
जे जे अहाँ सँ बल बति यौलक ,
ताही पठैलहूँ कालक गाल
अहाँक नाम सँ थर - थर कॉपय ,
भूत - पिशाच प्रेत सरभंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख --
लातक भूत बात नञि मानल ,
पर तिरिया लउ कउ गेलै परान ।
कानै लय कुल नञि रहि गेलै ,
अहाँक कृपा सँ , यौ हनुमान ॥
अहाँक भोजन आसन - वासन ,
राम नाम चित बजय सरंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख -
सील अगार अमर अविकारी ,
हे जितेन्द्र कपि दया निधान ।
"रामण " ह्र्दय विश्वास आश वर ,
अहिंक एकहि बल अछि हनुमान ॥
एहि संकट में आबि एकादस ,
यौ हमरो रक्षा करू अड़ंगी ॥
जगत जनैया --- अहाँ छी दुख ----
|| 3 ||
|| 3 ||
हनुमान चौपाई - द्वादस नाम
॥ छंद ॥
जय कपि कल कष्ट गरुड़हि ब्याल- जाल
केसरीक नन्दन दुःख भंजन त्रिकाल के ।
पवन पूत दूत राम , सूत शम्भू हनुमान
बज्र देह दुष्ट दलन ,खल वन कृषानु के ॥
कृपा सिन्धु गुणागार , कपि एही करू पार
दीन हीन हम मलीन,सुधि लीय आविकय ।
"रमण "दास चरण आश ,एकहि चित बिश्वास
अक्षय के काल थाकि गेलौ दुःख गाबि कय ॥
चौपाई
जाऊ जाहि बिधि जानकी लाउ । रघुवर भक्त कार्य सलटाउ ॥
यतनहि धरु रघुवंशक लाज । नञि एही सनक कोनो भल काज ॥
श्री रघुनाथहि जानकी ज्ञान । मूर्छित लखन आई हनुमान ॥
बज्र देह दानव दुख भंजन । महा काल केसरिक नंदन ॥
जनम सुकरथ अंजनी लाल । राम दूत कय देलहुँ कमाल ॥
रंजित गात सिंदूर सुहावन । कुंचित केस कुन्डल मन भावन ॥
गगन विहारी मारुति नंदन । शत -शत कोटि हमर अभिनंदन ॥
बाली दसानन दुहुँ चलि गेल । जकर अहाँ विजयी वैह भेल ॥
लीला अहाँ के अछि अपरम्पार । अंजनी लाल कर उद्धार ॥
जय लंका विध्वंश काल मणि । छमु अपराध सकल दुर्गुन गनि ॥
यमुन चपल चित चारु तरंगे । जय हनुमंत सुमित सुख गंगे ॥
हे हनुमान सकल गुण सागर । उगलि सूर्य जग कैल उजागर ॥
अंजनि पुत्र पताल पुर गेलौं । राम लखन के प्राण बचेलों ॥
पवन पुत्र अहाँ जा के लंका । अपन नाम के पिटलों डंका ॥
यौ महाबली बल कउ जानल । अक्षय कुमारक प्राण निकालल ॥
हे रामेष्ट काज वर कयलों । राम लखन सिय उर में लेलौ ॥
फाल्गुन साख ज्ञान गुण सार । रुद्र एकादश कउ अवतार ॥
हे पिंगाक्ष सुमित सुख मोदक । तंत्र - मन्त्र विज्ञान के शोधक ॥
अमित विक्रम छवि सुरसा जानि । बिकट लंकिनी लेल पहचानि ॥
उदधि क्रमण गुण शील निधान ।अहाँ सनक नञि कियो वुद्धिमान॥
सीता शोक विनाशक गेलहुँ । चिन्ह मुद्रिका दुहुँ दिश देलहुँ ॥
लक्षमण प्राण पलटि देनहार । कपि संजीवनी लउलों पहार ॥
दश ग्रीव दपर्हा ए कपिराज । रामक आतुरे कउलों काज ॥
॥ दोहा ॥
प्रात काल उठि जे जपथि ,सदय धराथि चित ध्यान ।
शंकट क्लेश विघ्न सकल , दूर करथि हनुमान ॥
लीला अहाँ के अछि अपरम्पार । अंजनी लाल कर उद्धार ॥
जय लंका विध्वंश काल मणि । छमु अपराध सकल दुर्गुन गनि ॥
यमुन चपल चित चारु तरंगे । जय हनुमंत सुमित सुख गंगे ॥
हे हनुमान सकल गुण सागर । उगलि सूर्य जग कैल उजागर ॥
अंजनि पुत्र पताल पुर गेलौं । राम लखन के प्राण बचेलों ॥
पवन पुत्र अहाँ जा के लंका । अपन नाम के पिटलों डंका ॥
यौ महाबली बल कउ जानल । अक्षय कुमारक प्राण निकालल ॥
हे रामेष्ट काज वर कयलों । राम लखन सिय उर में लेलौ ॥
फाल्गुन साख ज्ञान गुण सार । रुद्र एकादश कउ अवतार ॥
हे पिंगाक्ष सुमित सुख मोदक । तंत्र - मन्त्र विज्ञान के शोधक ॥
अमित विक्रम छवि सुरसा जानि । बिकट लंकिनी लेल पहचानि ॥
उदधि क्रमण गुण शील निधान ।अहाँ सनक नञि कियो वुद्धिमान॥
सीता शोक विनाशक गेलहुँ । चिन्ह मुद्रिका दुहुँ दिश देलहुँ ॥
लक्षमण प्राण पलटि देनहार । कपि संजीवनी लउलों पहार ॥
दश ग्रीव दपर्हा ए कपिराज । रामक आतुरे कउलों काज ॥
॥ दोहा ॥
प्रात काल उठि जे जपथि ,सदय धराथि चित ध्यान ।
शंकट क्लेश विघ्न सकल , दूर करथि हनुमान ॥
|| 4 ||
|| हनुमान बन्दना ||
जय -जय बजरंगी , सुमतिक संगी -
सदा अमंगल हारी ।
मुनि जन हितकारी, सुत त्रिपुरारी -
एकानन गिरधारी ॥
नाथहि पथ गामी , त्रिभुवन स्वामी
सुधि लियौ सचराचर ।
तिहुँ लोक उजागर , सब गुण आगर -
बहु विद्या बल सागर ॥
मारुती नंदन , सब दुख भंजन -
बिपति काल पधारु ।
वर गदा सम्हारू , संकट टारू -
कपि किछु नञि बिचारू ॥
कालहि गति भीषण , संत विभीषण -
बेकल जीवन तारल ।
वर खल दल मारल , वीर पछारल -
"रमण" क किय बिगारल ॥
|| 5 ||
॥ हनुमान वंदना ॥
शील नेह निधि , विद्या वारिध
कल कुचक्र कहाँ छी ।
मार्तण्ड ताम रिपु सूचि सागर
शत दल स्वक्ष अहाँ छी ॥
कुण्डल कणक , सुशोभित काने
वर कच कुंचित अनमोल ।
अरुण तिलक भाल मुख रंजित
पाँड़डिए अधर कपोल ॥
अतुलित बल, अगणित गुण गरिमा
नीति विज्ञानक सागर ।
कनक गदा भुज बज्र विराज
आभा कोटि प्रभाकर ॥
लाल लंगोटा , ललित अछि कटी
उन्नत उर अविकारी ।
वर बिस भुज अहिरावण
सब पर भयलहुँ भारी ॥
दिन मलीन पतित पुकारल
अपन जानि दुख हेरल ।
"रमण " कथा ब्यथा के बुझित हूँ
यौ कपि किया अवडेरल
|| 6 ||
|| हनुमान - आरती ||
॥ हनुमान वंदना ॥
शील नेह निधि , विद्या वारिध
कल कुचक्र कहाँ छी ।
मार्तण्ड ताम रिपु सूचि सागर
शत दल स्वक्ष अहाँ छी ॥
कुण्डल कणक , सुशोभित काने
वर कच कुंचित अनमोल ।
अरुण तिलक भाल मुख रंजित
पाँड़डिए अधर कपोल ॥
अतुलित बल, अगणित गुण गरिमा
नीति विज्ञानक सागर ।
कनक गदा भुज बज्र विराज
आभा कोटि प्रभाकर ॥
लाल लंगोटा , ललित अछि कटी
उन्नत उर अविकारी ।
वर बिस भुज अहिरावण
सब पर भयलहुँ भारी ॥
दिन मलीन पतित पुकारल
अपन जानि दुख हेरल ।
"रमण " कथा ब्यथा के बुझित हूँ
यौ कपि किया अवडेरल
|| 6 ||
|| हनुमान - आरती ||
आरती आइ अहाँक उतारू , यो अंजनि सूत केसरी नंदन ।
अहाँक ह्र्दय में सत् विराजथि , लखन सिया रघुनंदन
कतबो करब बखान अहाँ के '
नञि सम्भव गुनगान अहाँके ।
धर्मक ध्वजा सतत फहरेलौ , पापक केलों निकंदन ॥
आरती आइ --- , यो अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
गुणग्राम कपि , हे बल कारी '
दुष्ट दलन शुभ मंगल कारी ।
लंका में जा आगि लागैलोहूँ , मरि गेल बीर दसानन ॥
आरती आइ --- , यो अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
सिया जी के नैहर , राम जी के सासुर '
पावन परम ललाम जनक पुर ।
उगना - शम्भू गुलाम जतय के , शत -शत अछि अभिनंदन ॥
आरती आइ --- , यो अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
नित आँचर सँ बाट बुहारी '
कखन आयब कपि , सगुण उचारी ।
"रमण " अहाँ के चरण कमल सँ , धन्य मिथिला के आँगन ॥
आरती आइ --- , यो अंजनि ---- अहाँक --- लखन ---
बुधवार, 8 फ़रवरी 2017
मैथिल कने करि विचार !!
विराट मिथिला क छाती पर
चलल कोना हरक फार
चिर माए मिथिलाक छाती
भाइ से भाइ कोना भेल काती
एकटा बनल कोना मधेस
दोसर कोना बनल बिहार
हे मैथिल कने करि विचार......२
माए मिथिला तडपि तडपि
ब्यथा अपन सुनाबी रहल अछ
नयनक नोर बनल ईनहोर
वेदना सँ कराही रहल अछ
हे मिथिलाक मैथिली ललना
माए केर कने सुनी पुकार
हे मैथिल कने करि विचार ........२
लूटल गेल माए केर स्मिता
भोरहल अछ मान मर्दन
भाषा भेष भुगोल बदलल
झुकल स्वभिमानक गर्दन
हे मैथिलपुत्र सुनी कने
माए मिथिलाक चीत्कार
हे मैथिल कने करि विचार.......२
हे मिथिलाक मैथिल ललना
माए पडल अछ सुद्द भर्ना
अंग्रेज़ केलक एहन घात
आधा मिथिला काते कात
नेपाल के देलक सौगात
माए कहि देल जाए उपहार ?
हे मैथिल कने करि विचार......२
हे मैथिल आब ते जागु
एहि पार ओहि पार,दोनो पार जागु
गरिमामय इतिहास बचावु
अपन मिथिला राज्य बनाबु
करि मिथिला राज्य निर्माण
तखने भेट्त चहुओर सम्मान
हे मैथिल जुनि बनी लाचार
हे मैथिल कने करि विचार .......२
ऋषि मुनि कए पावन धर्ती
मिथिलावासी थिकहु सन्त
माएक स्मिता रक्षा हेतु
संकोच नहि बनए मे चँड
सुरवीर केर सन्तान हम
सौर्य नहि अछी हमर कम
मुदा फुटल किएक करम कपार
हे मैथिल कने करि विचार ........२
बनत जखन मिथिला प्रदेस
मिटत दुख दारिद्र कलेस
सुख समृद्धि,सुमंगल् वृद्धि
होएत रिद्धी सिद्धि श्रीगनेश
फेर बढत विद्वजन विद्वुषि कए मान
होत मिथिला राज्यक निर्माण
लिखु मिथिला के करम कपार
हे मैथिल कने करि विचार.......२
रचनाकार :- प्रभात पुनम
मंगलवार, 31 जनवरी 2017
गज
गजल
मोन होइए जे बियाह कS लि
तै अहा स मोनक सलाह क लि ।।
नुका नुका कतेक दिन मिलब
चलु प्रेम आब बेपर्वाह क लि ।।
पहिल प्रेम जे केलौ अहा स
तै मोन होइए जे निर्वाह क लि ।।
प्रेम सागर केर नाव अहा छि
तै मोन होइए जे मलाह बनी ।।
अहाक जोबन मादक्ता पिब क
मोन होइए सते बताह बनी ।।
सुख सागर यत्रा पैर प्रीतम
मोन होइए धारा प्रवाह चली ।।
प्रभात पुनम
रुबाई
रुबाई
१.याद अहाँक निन उडा लSगेल
स्नेह्क स्वपन से पीडा दSगेल
मन कहाँ छल विछ्डि अहाँ सँ
मुदा करम कपारे दगा दSगेल
२.अन्जाने मे कभी,कदम मत उठाया करो,
अजि,बेगाने डगर,सोच सम्झ चला करो !!
अपनो को पराया सम्झ,गैरो पे भरोसा ,
अजि,खुद से खुद को,ना झुठलाया करो !!
by:- प्रभात पुनम
रुबाई
३.बढैए मिथिला मैथिली कए मान !
जतए हुए विधापती केर बखान !!
मिथिलाक पर्चम गगन चुमए !
बढैेए जन जन कए स्वभिमान !!
४.हे सुरवीर सहिद तुझे कैसे और क्या करु मै अर्पण ।
करु माल्यअर्पण या खुदको तेरे राह पर करु समर्पण ।।
ब्यर्थ न जाने दु बलिदानि तेरा ऐसा कुछ तो करना है ।
साकार करु सपना तेरा फिर करु श्रद्धाञ्जली अर्पण ।।
कविता
कविता :- पक्ष पोशक@ प्रभात पुनम
तिमी राम्रो काम गर्दा पनि
म न राम्रो नै भन्छु ,
मेरो मन ले न माने पनि
मेरो परिवेश को करले
तिम्रो काम लाई कहिले
राम्रो भन्न सकिदैन !
किन कि म तिमी जस्तो
हुन् सकिन,
तिमी भित्र जो साहस छ,
म भित्र छैन !
तिमी आफ्नो अस्तित्व
कायम गर्न चाहन्छौ ,
म उनिकै अस्तित्व को
गुणगान गर्नु धर्म सम्झिन्छु !
तिमी परिवर्तन चाहन्छौ,
म यथास्थिति कै
पोशक बन्न चाहन्छु !
तिमी स्वराज चाहन्छौ ,
म उपनिवेश लाई
भाग्य ठान्दछु ।
तिमी आफ्नो इतिहास
लेखन चाहन्छौ,
म उनी कै इतिहासमा
रम्न्न चाह्न्छु !
तिमी आफ्नो अधिकार
माग्दा राष्ट्रद्रोही बन्छौ,
म तिम्रो विरोध गर्दा
रास्ट्रबादी भनाउछु !
तिमी जब जब माग्छौ
बराबरी को अधिकार ,
म सदैब गर्ने छु तिम्रो प्रतिकार !
तिमी बन्छौ परिवर्तन
अभियान को उद्घघोशक,
म हुने छु यथास्थिति को
पक्ष पोशक !
02-01-2017
नव वर्ष
नव वर्षक नव नव संदेश
मिटए दुख दारिद्र कलेस
सुख समृद्धि,सुमंगल् वृद्धि
होमए रिद्धी सिद्धी श्रीगनेश
नव नव विचारक अँकुरण
होमए ज्ञान् ज्योती प्रस्फुटन
अविराम तरलता केर धारा
सब जीव जगत करि अवलम्बन
छ्ल दम्भ द्वैध होमए अवसान
बढए विद्वजन विद्वुषि कए मान
सभ्यताक ध्वजा गगन चुमए
होमए सभ्य समाजक निर्माण
रचनाकार :- प्रभात पुनम
कविता
कविता @ प्रभात पुनम
हे अहा सब
झगरा जुनि करि
कने हमरो गप सुनि
किनको सतौने अछ
शित्लहरी
त किनको बैशाखक
दुपहरी
कियो मगैत छि
स्नेहक तप्त
कियो होबए चाहैत छि
जस स तृप्त
हम नैना भुटका कए
फिकर ककरो ऐछ
सितलहरी हुये कि दुपहरी
मोटका मोटका किताबक
बोझ उठउने
काग कुचरैत
घर स बहरैत छि
स्या स्या करैत
स्कुल पहुचैत छि
भुखल पेट ,कपा लपेट
अप्स्यात भेल, साझ
घर पहुचैत छि
ममि पपा मे नित दिन
झगडा देखैत छि
जुनि समय भेट्ए कि
कने हमरो हाल चाल पुछि ।
बीहनि कथा
बिहनी कथा
दहेज बेटिक अधिकार @ प्रभात पुनम
लाल बौआ :- हे यौ बौआ काका , एगो गप करबाक छ्ल अहा स !
काका:- कि गप कह ने झट स ...
लाल बौआ :- आइ काइल्ह दहेज मुक्त मिथिला ,दाइजो उन्मुलन , दहेज एक अपराध ,दहेज समाजक कलन्क आर नहि जानी कि कहादिन सभक नारा बड जोर सोर
स लाइग रहल छै !
काका:- ह रौ हम्हु इ सब देख क बड अच्म्भित भेल थिकहु , भगवानक कृपा स चाइर गो बेटा के बाप छि हम, मोने मोन सोचने छल्हु जे बेटाक बिआह मे बेटिबाला के डार सरका क खुब पाई ऐठब मुदा इ दहेज बिरोधी सब त...... गेल भैस पाइन मे बाला कथनी क देलक !
लाल बौआ:- धु .......तोरि के ,काका तोहु ने अनेरे चिन्ता मे पैर गेलाह !
काका:- त तोहि कह ने झट स........जे आब दहेज कोना लेल जाए !
लाल बौआ:- आइ हौ काका ......हम सब पैढ लिख घाँस छिल लेल बैसल छि कि ?
काका :- त कुनु जोगार लगाबे ने तब ने बुझबौ !
लाल बौआ:- एखन महिला अधिकार के बजार सेहो बड गर्म छै , तेह दहेज बेटिक अधिकार थिक ,दहेज महिलाक हक थिक कहि कए हम पढल लिखल युवा पत्रकार याह नाटक हेतु कलाकार बैन जाइछी ! आ जत जत आदर्श बिआह वा दहेज मुक्त मिथिलाक वाद साम्बाद हेतै हम वहि ठाम दहेज कए बेटिक अधिकार सङ जोईर देबै आ बड चलाकी पुर्वक लोक सभ के दिगभ्रमित क देबै अहा जुनि चिन्ता करि ।
आब कहु केहन लागल हमर योजना !
काका :- वाह वाह सच मे तु कलाकार छे नुनु
हे ईस्वर
आप सभी बन्धु बान्धव एवं मानव हित मे ईश्वर से कर्बद्ध प्राथना करता हु कि महेश्वर जन जन का कल्याण करे !
हे ईश्वर हे प्रभु पर्मेश्वर
शक्तिशाली सर्वव्यापी शर्वेश्वर
जगत पालक हे दिन बन्धु
दायाँ सागर करुणा शिन्धु
हे अस्ट नवनिधि दाता
धन धान्य भाग्य विधाता
हे विघ्न हरन मंगलमुरत
करो जन कल्याण तुरत
हे शुखराशी मालिक पालनहार
हे घट घट बासी तारणहार
दुख दुर कर सुख पुर कर
करदो जन जन का उपकार
आदि तुम्ही आनादी तुम्ही हो
लय प्रलय के मालिक तुम्ही हो
धर्म नियति उद्घोशक तुम्ही हो
दिव्य दृष्टि का पोषक तुम्ही हो
अधर्म का नास,कुदृष्टि का सर्वनाश
मानवता हृदय मे करे सब का बास
पल प्रतिपल प्रस्फुटन हो प्रकाश
हो जन जन मे सभयता का विकाश
भय त्राश से समाज निर्भय रहे
अन्वरत्त ज्ञानशिल का धारा बहे
विद्वान विद्वशि का सामान मिले
आत्म गौरव का श्वभिमान बढे
रचनाकार :-प्रभात पुनम
संविधान सन्शोधन
संविधान संशोधन एउटा षडयन्त्र !
होसियार ! होसियार !! होसियार !!!
सत्ताधारीपक्ष माओवादी र नेपाली काङ्रेस ले अमुर्त संविधान संशोधन प्रस्ताव सांसद सभामा दर्ता गराउनु र उनिहरु कै सांसद एवं नेताहरु ताई न तुई को अवान्छित आन्दोलन गरि सडक र सांसद भबन तताउनु यो सुनियोजित घटनाक्रम हो भन्ने बुझ्न गह्रौ छैन !
एक अर्काको विरोध गर्न सदैब उद्दत देखिने सताधारी पक्ष र प्रतिपक्षी दल अहिले संविधान संशोधन विरुद्धमा एउतै मंचमा उभि आक्रमक शैलिमा जनता लाई भड्काउनु उक्साउनु र सामाजिक द्वन्द फैलाउने जस्ता अवाञ्छित क्रिडा गरि रह्दा सत्ता पक्ष को द्वयध मान्सिक्ता स्पष्ट झल्किन्छ !
प्रधानमन्त्री पुष्प कमल दहाल जि को क्ष्द्म्भेदी चरित्रको पुनरावलोकन पनि गर्नै पर्छ ज्ञातव्य गराउन चाहन्छु पहिलो संविधान सभा ताका कुरो हो प्रचण्ड जि ले सबै समुदायको बिपरितार्थक माग लाई समर्थन दिएर उचालेर संविधानसभा को मृत्युवरण गरायो मधेसी को एक मधेस एक प्रदेस माग मा पनि समर्थन ,थारुवान को थरुहत राज्य लाई पनि समर्थन अखण्ड सुदुर पश्चिम लाई पनि समर्थन झापा मोरङ सुन्सरी सहितको लिम्बुवान राज्यलाई पनि समर्थन यस्तो छल प्रपन्च गरि मधेसी को माङ्ग लाई गर्भ्पतन गराउने दुशाहस गर्ने मध्ये को एक खलपात्र प्रचण्ड पनि हुन ! प्रचण्ड को यो चरित्रले कसैको हित गरेनन बरु राजनिती धरातल नै षडयन्त्रको भुमरीमा फस्दै गयो र परिणामस्वरूप संविधानसभाको अवसान भयो !
दोस्रो संविधानसभाले देस लाई एक थान संविधान त दिन भ्यायो तर दुर्भाग्यवश राज्य बाट शोशित पीडित बर्ग समुदाय आदिबासी जनजाती मधेसी थारु मुस्लिम लाई संविधानले समेटन सकेन र सम्बिधान एकल जातिय शाशन प्रानाली को पुनरावृत्ति एवं उथानको लागि मात्र सृजना गरिएको देखियो ! उत्पीडित समुदाय मधेसी संविधान बहिस्कार गरि आफ्नो हक अधिकार को लागि सडक सदन अवरुद्घ गरि आन्दोलनमा होमियो ६ महिना सम्मको लामो आन्दोलन र नाकाबन्दी को क्रममा ६० भन्दा बढीले ज्यान गुमाई सहादत दिए र पनि सरकार आन्दोलनको माग लाई सम्बोधन न गर्नु दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटेको छ ! आन्दोलनकारीहरु सडक को आन्दोलन त्याग गरि सदन बातै माग पूरा गराउने निर्णय गरि सदन प्रवेश गर्नु स्वागत योग्य कदम चाले प्रचण्ड को सरकारमा सहमतीय वातावरणको निर्मान गरे तर प्रचण्डले आन्दोलनकारीहरु सङ बिना विचार विमर्श , बिना सहमती ताई न तुई का अपुर्न सम्विधान संशोधन प्रास्तब दर्ता गाराउनु र संशोधन विरुद्ध प्रतिपक्षीको अवाज मा अवाज मिलाउन आफनो नेता पठाउनु यो क्ष्दम्भेदी चरित्र होइन भने के हो ?
सोच्निय बिषय के हो भने मधेसी ले नबलपरासी देखि कंचनपुर सम्म्को भुभाग एक प्रदेस र झापा देखि चितवन् सम्मको भुभाग एक प्रदेस हुन पर्छ यस्तै आदिबासी जनजातिहरु को पहिचान झल्किने गरि 10 प्रदेश को माग राखेको छ यो माग अन्तरिम संविधान र राज्य पुनर्संरचना आयोगको प्रस्तावित संरचना हो यो जायेज माग लाई सम्बोधन गर्नु को साटो ४ नम्बर प्रदेशबाट पहाडी जिल्ला लाई झिक्दा आन्दोलन गर्नुको ओचित्य छैन मधेस को मुलबासी हरु को हक अधिकार को विपरीत बुटवलको नवनागरिकहरुले गरेको आन्दोलन को कुनै अर्थ छैन तर महत्वपुर्ण कुरो के हो भने त्यो आन्दोलन भयो किन ? कसको स्वार्थ के छ ? पत्रकारहरु बढाइचढाइ त्यो आन्दोलन को सम्प्रेषण किन गर्छन जुन संचार मध्यमले मधेस्को ६ महिना कओ आन्दोलन लाई कुनै स्पेस दिन सकेन्न ,नाकबन्दी लाई भारतिय को नाकबन्दी को सङ्ग्या दिये ,आन्दोलन्कारी लाई विखणडनकारी आतंकबादी को नजरले हेरे , मधेसी आन्दोलनकारी लाई मोदिपुत्र भन्दै उपहास उडान बाकी राखेन्न आज त्यही नश्ल्बाद पत्रकारहरु बुटवलको आन्दोलन रास्ट्रबादी को आन्दोलन भनी हेद्लाइन बनाउन भ्याएर बरम्बार जनतामा सम्प्रेषण गर्नु उद्द्त भएका छन र सरकार संशोधन प्रस्ताब लाई पर्ख हेर विचार लाई आब्लम्बन गरेको छ आखिर किन ?
यो एउटा् सुनियोजित षड्यन्त्र हो जनता लाई देखाउन खोजेको छ कि हेर ४ नम्बर प्रदेश बाट पहाडी जिल्ला मात्र झिक्दा विरोधमा जनसागर ओर्ल्यो रे विरोध गर्ने जति रास्ट्रबादी हुने तर जनजाती आदिबासी एवं मधेसि बहुल्य क्षेत्रको प्रदेश माग्दा विखण्डनबादी हुने रे यस्ता छल प्रपन्च रचेर नागरिक नागरिक बिचको सद्भावमा उथलपुथल मचाउने र यथास्थिति लाई नै जबर्जस्ती मान्न बाध्य बनाउने चल्खेल भैरहेको छ ! तर शासकहरुको दुस्स्चरित्रले नेपालको अस्तित्व नै गुमाउने प्रबल संभावना देखिन्छ र यस्को जिम्मेवार पनि त्यही एकल जातीय शाशक हुनुपर्छ ! होइन भने राष्ट्रियता भनेको अर्थ बुझ्नुपर्छ मधेसी लाई विखण्डनकारी भनेर राष्ट्रियता देखाउनु ,भारत लाई गाली गरेर राष्ट्रबादी ठान्नु र गौर्वन्वित हुनु नै विखणिडनबादी हो ! नेपाल बहुराष्ट्रिय देस हो विभिन्न राष्ट्र लाई बलपुर्वक छलपुर्वक मिलाएर बनाईएको देश हो यो देस तब मात्र अखण्ड रहन सक्छ र विकाश गर्न सक्छ जब सबै भाषा भेष धर्म संस्कृति नेपालको राष्ट्रियता मा झल्किन्छ हरेक नागरिकले राष्ट्र प्रती अप्नत्वको अनुभूति गर्न सकुन राष्ट्रियता भनेको देस को माटो पानी नाका सिमाना राष्ट्रको सबै भाषा भेष धर्म सन्स्कृती जात जाती नागरिक प्रती सद्भाव सद्प्रेम र अप्नत्वको अनुभूति गर्नु रक्षा गर्नु विकास गर्नु नै राष्ट्रप्रेम राष्ट्रबादी र राष्ट्रियता हो !
लेखक:- प्रभात राय भटट
माए महात्म
दुनिया के दौर मे स्नेह ममता स बहुत दुर भागल छि जेना बुझाइए हम्ही टा ए जग मे अभागल छि ते आजु माए कए याद सँ भाव विभोर भोगेल्हु अछी
जेना बुझाइए कतेक जल्दी माएक ममता के छाव मे चैनक सास लि ।
[माए महात्म ]
माए सन कियो नए जगमे महान
खोईजलिय चाहे सगरो जहान
कावा काशी मथुराधाम
शास्त्र पुरान गीता कुरान
सगरो माएक ममता कय बखान
कियो नए जगमे माए समान
माएक ममता अछी महान.........
हम छलहुँ गर्भवास
माएक पेट मे जखन नौ मास
सकल सुरत बिनु देखल
माए देलन्ही स्नेहक सुवास
माएक मोन हर्ष उल्लास
कियो नए जगमे माए समान
माएक ममता अछी महान
प्रसव पिडा सँ माए
बड छटपटोलन्ही
मृत्यु सँ लडि लडि
जन्म देलन्ही
हमर सुरत देख्ते माए
ममता कए उत्कर्स पौलन्ही
कियो नए जगमे माए समान
माएक ममता अछी महान
हमर मल मुत्र सभटा
हर्शित भए कएलन्ही
था था थैया आङुर पकैर
चलब सिखौलन्ही
मा मा पा पा बा बा कहि
बाजब सिखौलन्ही
कियो नए जगमे माए समान
माएक ममता अछी महान
घुट घुट घुटुर घुटुर
खाए पिएब सिखौलन्ही
अपन रक्त समान दूध
अमृतपान करौलन्ही
छाती स साटि कय
सङ सङ सुतौलन्ही
कियो नए जगमे माए समान
माएक ममता अछी महान
बिनु बजने मोनक बात
सभटा बुझ्लन्ही
अपन भुख पिआस निन सभटा
हमरे भुख पिआस निन मे
समर्पित कय देलन्ही
बढ जतन स पोसि पाली कए
तरुण बनौलन्ही
कियो नए जगमे माए समान
माएक ममता अछी महान
पग पग सदती ममता कए
खजाना लुट्बलन्ही
जीवन अपन
निछावर केलन्ही
अवर्निय अछी माएक ममता
माएक बर्णन कोना करि
तुक्ष शब्द स कोना करि माएक गुणगान
माएक ममता अछी महान
जगत जननी जग्दम्बा थिक माए
बत्सल्ल प्रेमक गँगा थिक माए
सुन्दर छवि अप्सरा थिक माए
जीवन कए सहारा थिक माए
भक्ती कए गुणगान थिक माए
शक्ति कए स्वभिमान थिक माए
सृष्टि कए अनुपम वरदान थिक माए
कावा काशी मथुरा धाम थिक माए
शास्त्र पुरान गीता कुरान थिक माए
जगमे सभ स पैघ महान थिक माए
माएक ममता थिक अनमोल रतन
जगमे कतहु नहि भेटत माए धन
मानल करि माए महात्म कए कथन
तन मन सँ करि माएक सेवा जतन
कवि:-प्रभात पुनम
नारि दिवस
नारी दिवस
[नारी दिबस ]
हे जनन्नी अहाँ थिकहुँ जगमे महान
नहि किछु आर जगमे अहा सम्मान
बत्सल प्रेम प्रकृति कय सुन्दर धारा
विलक्षण छवि प्रतीत उज्यारा
सागर स गम्भीर अछी अहाक धिर
शिखर स पैघ अछी स्वभिमानक शिर
अनुराग देखि कय पडाएल कलेश
अहि स होएत अछी शुभ श्रीगनेश
शर्वत्र सदती अहा थिकहु विशेष
रुप अनेक किछु नहि अछी शेष
सहि कय अनेको हे जनन्नी कष्ट
करैत छि अहा सुखक मार्ग् प्रस्स्त
करि अन्वरत नारी कय सम्मान
नारी स अछी भेट्ल सभके मान
अछी हृदय ओत प्रोत भावना
नारी दिबसके अशेष शुभकामना
कवि- प्रभात पुनम
गजल
गोरि याद अबैय अहाक जखन जखन
धक धक धडकैय अहिलेल धडकन !!
मोन सँ नै हटे अहाक मोहनी सुरतिया
मोन ब्याकुल रहैय अहिलेल सदिखन !!
अहा गीत गजल अहि सङीत हमर छि
अहाक रुप लगैय पुर्णिामा के चान सन !!
जिएब मुस्किल भेल अहा बिनु ए सजनी
विरह जिन्दगी लगैय गोरि उचाटसन !!
हिया मे समएलौ बनी कए हमर जान
प्राण सजनी उडैय अहिलेल छन छन !!
सदस्यता लें
संदेश (Atom)