गुरुवार, 3 मार्च 2011

wo gujre huye jamana@prabhat ray bhatt


खुश किस्मत से हमने  तुमको पाया,
तुमने भी दिल से मेरा साथ निभाया,
जिसमे सिर्फ मै था और तुम थी ,
मैं तेरे दिल की धड़कन था तू मेरी रूह थी,
सुवह उठ्तेही मैं तेरी सूरत देखा करता था ,
चाय के प्याला हाथ में,
 मुस्कान तेरी होठो पे रहता था,
प्याला हटाके तेरी हथेलियों से मैं पीया करता था,
लपक के मैं तुझे अपने सिने से लगाया करता था,
वक्त को सायद ये राश न आया,
जीवन की राहों में फिर एक मोड़ आया,
मैंने तुम्हे  बहुत दूर छोड़ आया,

पर अब भी वो गुजराहुवा पल याद आता है,
वो सुहानी पल की रंगीन घडी याद आता है,
आह निकल आती है मुझे बहुत रुलाती हैं ,
कई दिनों से सिवाय तेरे,
मेरे लब्ज पे कुछ और आती नहीं,
दुनिया विराना सी लगती है,
सारे रिश्ते अंजना सी लगती है,
वो गुजरे हुए जमाना याद आता है,
वो सुहानी पल की जिन्दगी याद आता हैं,
वो तेरी मंद मंद मुस्कुराहट सारे कायनात में,
कही भी मुझे मीलाही नहीं ,
तेरे सिवाय मेरे दिल में,
किसी और का प्यार खिलाही नहीं,
यह तुम भी जानती हो तेरे बेगैरः
मैं जिन्दगी तन्हाई में जीता हूँ ,
गम की रोटी खता हूँ ,
आंसू की पानी पिता हूँ ,
न जाने कौन सी खता हुयी मुझ से,
जो मिला ऐसा सजा मुझे ,
खुदा न करे किसी को येसी मुसीबत आये,
मज़बूरी में दीवाने एक दूजे से बिछड़ जाये,

रचनाकार:--प्रभात राय भट्ट

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

b