बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

गजल
मतलब के सब संगी, मतलबी छै सब लोक
दुनिया में कियो नहि ककरो, स्वार्थी छै सब लोक

स्वार्थक वशीभूत दुनिया की जाने ओ प्रेम प्रीत
प्रेम पथ पर किएक कांट बोए छै सब लोक

दुष्ट सभक मोन में भरल छै घृणाक जहर
दोसर के सताबै में तृष्णा मेटाबै छै सब लोक

ललाट शोभित चानन गला पहिर कंठी माला
भीतर भीतर किएक गला कटै छै सब लोक

सधुवा मनुखक जीवन भगेल अछि बेहाल
कदम कदम पर जाल बुनैत छै सब लोक

अप्पन ख़ुशी में ओतेक ख़ुशी कहाँ होए छै कियो
जतेक आनक दुःख में ख़ुशी होए छै सब लोक

अप्पन दुःख में ओतेक दुखी कहाँ होए छै कियो
जतेक आनक ख़ुशी में दुखी होए छै सब लोक

अप्पन जिन्गीक चिंतन मनन कियो नै करेय
आनक कुचिष्टा में जीवन बिताबै छै सब लोक

विचित्र श्रृष्टिक महा विचित्र पात्र छै सब लोक
"प्रभात" के किएक कुदृष्टि सं देखै छै सब लोक
.....................वर्ण:-१८ ................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

गीत@प्रभात राय भट्ट

गीत:-
सजना सजना यौ हमर सजना
सुनु सुनु ने कने हमर कहना //२
सजनी सजनी ऐ हमर सजनी                  मुखड़ा //
कहू कहू ने जे किछु अछि कहना //२


सजना सजना यौ हमर सजना
सुनु सुनु ने कने हमर कहना
ह्रिदय में हमर अहिं बास करैतछि
हमर मोनक सभटा आस पुरबैछि
हमर नयनक अहिं तारा छि सजना
हमर जीवनक अहिं सहारा छि सजना //२

सजनी सजनी ऐ हमर सजनी
कहू कहू ने जे किछु अछि कहना
कहू ने कहू हम सभटा जनैतछि
अहाँक प्रेम पाबी हम हर्षित रहैतछि
अहाँ हमरा मोन में हुलास बढ़बैतछि
अप्पन प्रेम नै टुटत इ बिस्वास हम दैतछि//२


सजना सजना यौ हमर सजना
सुनु सुनु ने कने हमर कहना
जन्म जन्म के हम छि पियासल
अहिं सं जीवनक उत्कर्ष अछि बाँचल
अहींक नाम सं खनकैय हमर कंगना
हमर दिल में अहिं धरकै छि सजना//२


सजनी सजनी ऐ हमर सजनी
कहू कहू ने जे किछु अछि कहना
जन्म जन्म तक हम रहब अहींक संग संग
अहींक प्रीत सं भरल अछि हमर मोनउपवन
अहाँक प्रीतक डोर सं बान्हल रहब रजनी
जीव नै सकब हम अहाँ बिनु सजनी    //२


रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

गीत @प्रभात राय भट्ट


गीत
ऐ सजनी कने घुंघटा उठाऊ ने हमर प्राण प्रिया
पूर्णिमा सन अहांक सूरत देखिला फाटेय हिया //२
थर थर कपैय देह मोर धरकैय करेज पिया
यौ पिया कोना घुंघटा उठाऊ धक् धक् धरकैय जिया //२
...
पहिल प्रेमक पहिल मिलन में एना करैछी किया
ऐ सजनी कने घुंघटा उठाऊ ने हमर प्राण प्रिया
अहि हमर लाजक घुंघटा उठा दिय ने पिया
नजैर कोना हम मिलाऊ धक् धक् धरकैय जिया //२

एकटा बात पुछू पिया कहू साँच साँच कहब तं
हमरा विनु कोना रहब अहाँ जौं हम नै रहब तं
धनि जे बजलौं फेर नै बाजब कहू हाँ कहब तं
अहाँ विनु जिब नै सकब हम जौं अहाँ नै रहब तं //२

संग छुटतै नै अप्पन टुटतै नै पिरितिया
खा कS कहैछी सजना हम इ किरिया
छोड़ी देब दुनिया हम तोड़ी देब जग के रीत
छोड़ब नै अहांक संग सजनी तोड़ब नै प्रीत //२

छोड़ी देब दुनिया हम तोड़ी देब जग के रीत
छोड़ब नै अहांक संग सजना तोड़ब नै प्रीत
अहिं सं जगमग करेय हमर जीवन ज्योति
अहिं छि सजनी हमर मोनक हिरामोती //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

गीत@प्रभात राय भट्ट

गीत:-
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२


देह देखार देख कS एकर 
चढ़ल हमरा बोखार रौ
कोना उतरतै हमर बोखार
करहि कोनो जोगार रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२


छ इन्चक घघरी पर
पेन्है छै तिन इन्चक चोली
चढ़ल जोवन सँ मारै छै
छौरा सभक दिल पर गोली
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२


देख कS एकर चालढाल
सगरो मचल छै बबाल रौ
जर जुवानक बाते छोड़
बुढबो एकरा पाछू बेहाल रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२


अजब गजब छै रूप रंग
देखही चलै छै कोना उतंग रौ
बेलाईती बिलाई सन केस लगै छै
देसी बिलाई सन आइंख रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२


चौक चौराहा हाट बाजार
सभ करै छै एकरे इन्तजार रौ
सुन रे भजना सुन रे फेकना
कर ने हमरो लेल कोनो जोगार रौ
देखही रे भाई इ छौरी छै बड व्यूटी रौ
पेन्ह कS मिनी स्कट चलबै छै स्कूटी रौ //२


रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

gazal @prabhat ray bhatt

                  gazal
मनुखक दुर्गन्ध सं मनुख अछि परेशान शहर में

भागाभागी दौड़ा दौड़ी भेल गेल कतेको जान शहर में

गली गली में जाल बिछौने बैसल दुर्योधन दुशाषण

चिर हरण भेल द्रोप्तीक गेल कतेको प्राण शहर में

बस स्टैंड रेलवे स्टेशन टावर चौक पवार हॉउस

सगरो घुमैय नकाबपोश हत्यारा शैतान शहर में

अपहरण हत्या चंदा फिरौती सं बनल शीशमहल

रौशनी चमकैत महल में रहैय शैतान शहर में

वातावरण भेल धूमिल भोजनभात भगेल विषादी

नगर बधू कें जहर लेलक कतेको प्राण शहर में

गामक मंगला अईधैर घुईर नै आएल अछि गाम

आएल ओकर लाश चढ़ीगेल ओ वलिदान शहर में

अहिल्या तारा द्रोप्ती सीता सबहक होइए बेच बिखिन 
kumari kanya k hoiy ber ber kanyadan shahar me
varn:-21
prabhat ray bhatt

गजल @प्रभात राय भट्ट

                गजल
एसगर कान्ह पर जुआ उठौने,कतेक दिन हम बहु
दर्द सं भरल कथा जीवनके,ककरा सं कोना हम कहू

अपने सुख आन्हर जग,के सुनत हमर मोनक बात
कहला विनु रहलो नै जाइय,कोना चुपी साधी हम रहू

अप्पन बनल सेहो कसाई,जगमे भाई बाप नहीं माए
सभ कें चाही वस् हमर कमाई,दुःख ककरा हम कहू

देह सुईख कS भेल पलाश,भगेल हह्रैत मोन निरास
बुझल नै ककरो स्वार्थक पिआस,कतेक दुःख हम सहु

मोन होइए पञ्चतत्व देह त्यागी,हमहू भS जाए विदेह
विदेहक मंथन सेहो होएत,कोना चुपी साधी हम रहू

नैन कियो करेज,कियो अधिकार जमाएत किडनी पर
होएत किडनीक मोलजोल, सेहो दुःख ककरा हम कहू

बेच देत हमर अंग अंग, रहत सभ मस्ती में मतंग
बजत मृदंग जरत शव चितंग सेहो कोना हम कहू
.........................वर्ण:-२२.............................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

             गजल
कतय भेटत एहन प्रेम जे मीत अहाँ देलौं
मित्रताक कर्मपथ पर मोन जीत अहाँ लेलौं
 
स्वार्थक मीत जग समूचा,मोन मीत नहीं कियो
धन्य सौभाग्य हमर मोन मीत बनी अहाँ एलौं

स्वार्थक मेला में भोगलौं हम वर वर झमेला
हर झमेला में बनिक सहारा मीत अहाँ एलौं

मजधार डूबैत हमर जीवनक जीर्ण नाव
नावक पतवार बनी मलाह मीत अहाँ एलौं

निस्वार्थ भाव अहाँ मित्रताक नाता जोड़ी लेलहुं
हर नाता गोटा सं बड़का रिश्ता मीत अहाँ देलौं

नीरसल जिन्गीक हर क्षण भेल छल उदास
उदास जिन्गीक ठोर पर गीत मीत अहाँ देलौं

संगीतक ध्वनी सन निक लगैय मीतक प्रीत
कृष्ण सुदामाक प्रतिक बनी मीत अहाँ एलौं
...............वर्ण:-१८.....................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

राष्ट्रीयता@प्रभात राय भट्ट

राष्ट्रीयता भनेको राष्ट्रको माटो संग जसको प्रगाढ़ प्रेम हुन्छ,जसले राष्ट्रको प्राकृतिक भाषा भेष संस्कृति पर्यावरण जीवजन्तु  को संगरक्षण गर्छ र कुनै  प्रकार को    छुवाछुत लिंगभेद  रंगभेद न राखी  सबै लाई समान्ताको व्यबहार गर्दछ  त्यों नै राष्ट्रबदी हो ! तर कथित राष्ट्रबादी  भनाउदो सामन्तबादीहरु  विभेदपूर्ण एकात्मक शाशन 
प्रणाली लाई शोषण गर्ने उदेश्य ले  जनतामा लागु गर्ने र गराउने प्रक्रिया लाई नै राष्ट्रबाद भने ठान्दछन ! र जसले यी सामन्तीहरुको अन्त्य गर्न खोज्दछन र विरुद्ध मा आवाज उठाउदछन तिनीहरु लाई देश द्रोह र राष्ट्रघात को संज्ञा दिई दबाउने काम गरिन्छ ! तर आज संसार भरि आर्थिक र स्वतन्त्रता को क्रान्ति मा जनताहरु तिब्रगतिले बाटोमा उर्लिएको छ ढिलो चाडो चरणबद्ध तरिकाले विश्व भरिका  सामन्तीहरुको अन्त्य निश्चित छ यसको ज्वलन्त उदाहरण हो लिबिया को क्रुर र दमनकारी शाषक  कर्नल  मोहमद गादाफी यी क्रुर सामन्ती शाषक र हिंशक प्राणी बाघ को तुलनात्मक अन्त्येष्ठी एउटै प्रकार को हुन्छ बाघ जब बुढो हुन्छ  सिकार गर्न असक्षम हुन्छ जसले गर्दा आलो रगत् र मासुको चोक्टा खान पाउदैन र उसको शक्ति मा ह्रास हुदै जान्छ  तब बाघ माथि साना मसिना जीवजन्तु हरु आक्रमण गर्छ बाघ लाई आहार बनाउछन र बाघ निरिह भएर हेर्नु बाहेक केहि गर्न सक्दैन अन्तः बाघ को अन्त्य हुन्छ ! ठिक यसै प्रकार सामन्ती शाषक को अन्त्य पनि यस्तै हुन्छ जब जनतामा चेतनाको विकाश हुन्छ तब जनता द्द्वारा युगान्तकारी संग्राम हुन्छ र जनता को विजय हुन्छ ! देस सत्ता शाशन जनताको हात मा आउँछ र सामन्तीहरु जनता लाई दमन शोषण गर्न पाउदैन तब क्रुर शाषकहरु बुढो बाघ जस्तै निष्क्रिय र निरिह हुन्छ ! अनि राष्ट्र द्द्वारा शोषित उपेक्षित हरेक समुदायहरु हरेक वर्ग लिंग का नागरिकहरु आफ्नो अधिकार सुनिश्चित को आवाज उठाउदै देशको प्रत्येक निकाय समावेशीकरण हुदैजान्छ र सामन्तबादहरुका उतराधिकारीहरुको अस्तित्वमा ह्रास हुदैजान्छ र निरिह भएर हेर्ने बाहेक अरु केहि गर्न सक्दैन अन्तः सामन्तीको अवसान माथि सर्वहारावर्ग को विजय हुन्छ ! आज को परिप्रेक्ष मा केहि यस्तै हालत  छ सामन्तबाद का  उतराधिकारीहरुको जसले आफ्नो अवसान निश्चित हुने भय डर त्राश ले त्रशित भई खोक्रो राष्ट्रवाद का नारा लगाएर आम जनताहरु लाई झुक्याउन र पुनः आफ्नो काया पलट गर्ने दाउपेचमा लागि परेका छन् !  शाषक को शोषण अभिव्यक्ति राष्ट्रबादी जनताको अधिकार अभिव्यक्ति अराष्ट्रबादी यो कस्तो विडम्वना हो ?
लेखक:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

गीत:-विरह@प्रभात राय भट्ट

                 गीत:-विरह
आबू हमरा लग आबू पिया निरमोहिया //   मुखड़ा
सेनुरक लाज रखु हमर पिया सिनेहिया//२
 
कतय गेलहुं हमर प्रीतम चितचोर             
अहाँक इआदे नैना बरसैय  मोर 
जिब नै सकब अहाँ बिनु हम सजना
घुईर चली आबू पिया अपन अंगना 
आबू हमरा लग आबू पिया निरमोहिया //  
सेनुरक लाज रखु हमर पिया सिनेहिया//२
 
पल पल हम मरि मरि जिबैतछी
घुइट घुइट आइंखक नोर पिबैतछी
घुईर आबू सुनिक हमर वेदनाक स्वर 
करजोरी विनती करैतछी पिया परमेश्वर 
आबू हमरा लग आबू पिया निरमोहिया //   
सेनुरक लाज रखु हमर पिया सिनेहिया//२
 
अहिं हमर मथुरा काशी मका मदीना 
अहाँ बिनु नहीं अछि हमरा जिनगी जीना 
चिर निंद्रा सं जागी आबू कलक मुह सं भागी 
समसान सं उठी आबू कब्रस्तान सं निकली आबू
 आबू हमरा लग आबू पिया निरमोहिया //  
सेनुरक लाज रखु हमर पिया सिनेहिया//२
 
आस नहि तोडू पिया साँस रहिगेल बड़ कम  
जौं कनियो देर करब निकली जाएत हमर दम
 निकली जाएत हमर दम....................२
पिया ...........पिया ........मोर पिया.....२
आबू हमरा लग आबू पिया निरमोहिया //   
सेनुरक लाज रखु हमर पिया सिनेहिया//२
 
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

"दहेज मुक्त मिथिला” आंदोलन के जरिये मैथिल समाज में सुधार की एक नयी धारा --




भारतीय संस्कृति के प्राचीन जनपदों में से एक राजा जनक की नगरी मिथिला का अतीत जितना स्वर्णिम था वर्तमान उतना ही विवर्ण है। देवभाषा संस्कृत की पीठस्थली मिथिलांचल में एक से बढ़कर एक संस्कृत के विद्वान हुए जिनकी विद्वता भारतीय इतिहास की धरोहर है। उपनिषद के रचयिता मुनि याज्ञवल्क्य
गौतमकनादकपिलकौशिकवाचस्पतिमहामह गोकुल वाचस्पतिविद्यापतिमंडन मिश्रअयाची मिश्रजैसे नाम इतिहास और संस्कृति के क्षेत्र में रवि की प्रखर तेज के समान आलोकित हैं। चंद्रा झा ने मैथिली में रामायण की रचना की। हिन्दू संस्कृति के संस्थापक आदिगुरु शंकराचार्य को भी मिथिला में मंडन मिश्र की विद्वान पत्नी भारती से पराजित होना पड़ा था। कहते हैं उस समय मिथिला में पनिहारिन से संस्कृत में वार्तालाप सुनकर शंकराचार्य आश्चर्यचकित हो गए थे।

कालांतर में हिन्दी व्याकरण के रचयिता पाणिनी जयमंत मिश्रमहामहोपाध्याय मुकुन्द झा “ बक्शी” मदन मोहन उपाध्यायराष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर”, बैद्यनाथ मिश्र यात्री” अर्थात नागार्जुनहरिमोहन झाकाशीकान्त मधुपकालीकांत झाफणीश्वर नाथ रेणुबाबू गंगानाथ झाडॉक्टर अमरनाथ झाबुद्धिधारी सिंह दिनकरपंडित जयकान्त झाडॉक्टर सुभद्र झाजैसे उच्च कोटि के विद्वान और साहित्यिक व्यक्तित्वों के चलते मिथिलांचल की ख्याति रही। आज भी राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त कतिपय लेखकपत्रकारकवि मिथिलांचल से संबन्धित हैं। मशहूर नवगीतकार डॉक्टर बुद्धिनाथ मिश्राकवयित्री अनामिका सहित समाचार चैनल तथा अखबारों में चर्चित पत्रकारों का बड़ा समूह इस क्षेत्र से संबंधित है। मगर इसका फायदा इस क्षेत्र को नहीं मिल पा रहा। राज्य और केंद्र सरकार द्वारा अनवरत उपेक्षा और स्थानीय लोगों की विकाशविमुख मानसिकता के चलते कभी देश का गौरव रहा यह क्षेत्र आज सहायता की भीख पर आश्रित है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्र होने के कारण प्रतिवर्ष यह क्षेत्र कोशीगंडकगंगा आदि नदियों का प्रकोप झेलता है। ऊपर से कर्मकांड के बोझ से दबा हुआ यह क्षेत्र चाहकर भी विकास की नयी अवधारणा को अपनाने में सफल नहीं हो पा रहा। जो लोग शैक्षणिकआर्थिक और सामाजिक रूप से सक्षम हैं भी वे आत्मकेंद्रित अधिक हैं इसीलिए उनका योगदान इस क्षेत्र के विकास में नगण्य है। मिथिलांचल से जो भी प्रबुद्धजन बाहर गए उन्होने कभी घूमकर इस क्षेत्र के विकास की ओर ध्यान नहीं दिया। पूरे देश और विश्व में मैथिल मिल जाएँगे मगर अपनी मातृभूमि के विकास की उन्हें अधिक चिंता नहीं है।

ऐसे में सामाजिक आंदोलन की जरूरत को देखते हुए स्थानीय और प्रवासी शिक्षित एवं आधुनिक विचारों के एक युवा समूह ने नए तरीके से मिथिलाञ्चल में अपनी उपस्थिती दर्ज़ कराई है। दहेज मुक्त मिथला के बैनर तले संगठित हुए इन युवाओं ने अपनी इस मुहिम का नाम दिया है “ दहेज मुक्त मिथिला
दहेज मुक्त मिथिला” जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह एक ऐसा आंदोलन है जिसकी बुनियाद दहेज से मुक्ति के लिए रखी गयी है। बिहार के महत्वपूर्ण क्षेत्र मिथिलांचल से जुड़े और देश-विदेश में फैले शिक्षित और प्रगतिशील युवाओं के एक समूह ने मैथिल समाज से दहेज को खत्म करने के संकल्प के साथ इस आंदोलन की शुरुआत की है। सामंती सोच के मैथिल समाज में यूं तो इस आंदोलन को आगे बहुत सी मुश्किलों का सामना करना है मगर शुरुआती तौर पर इसे मिल रही सफलता से ऐसा लग रहा है कि मिथिलांचल के आम लोगों में दहेज के प्रति वितृष्णा का भाव घर कर गया है और वे इससे निजात पाना चाहते हैं।

दहेज मुक्त मिथिला के अध्यक्ष प्रवीण नारायण चौधरी कहते हैं कि मिथिलांचल में अतीत मे स्वयंवर की प्रथा थी जिसका प्रमाण मिथिला नरेश राजा जनक की कन्या सीता का स्वयंवर है। समय के साथ मिथिलांचल में भी शादी के मामले में विकृति आई और नारीप्रधान यह समाज पुरुषों की धनलिपसा का शिकार होता गया। कभी इस समाज में शादी में दहेज के नाम पर झूटका(ईंट का टुकड़ा) गिनकर दिया जाता था वहीं आज दहेज की रकम लाखों में पहुँच गयी है। दहेज के साथ बाराती की आवाभगत में जो रुपये खर्च होते हैं उसका आंकलन भी बदन को सिहरा देता है। जैसे- जैसे समाज में शिक्षा का प्रचार-प्रसार बढ़ा है दहेज की रकम बढ़ती गयी है।“ श्री चौधरी आगे कहते हाँ कि बड़ी बिडम्बना है कि लोग लड़कियों की शिक्षा पर हुई खर्च को स्वीकार करना भूल जाते हैं।

संस्था की उपाध्यक्षा श्रीमती करुणा झा कहती हैं कि मिथिलांचल की बिडम्बना यह रही है कि यहाँ नारी को शक्ति का प्रतीक मानकर सामाजिक तौर पर तो खूब मर्यादित किया गया पर परिवार में उसे अधिकारहीन रखा गया। उसका जीवन परिवार के पुरुषों की मर्ज़ी पर निर्भरशील हो गया। शादी की बात तो दूर संपत्ति में भी उसकी मर्ज़ी नहीं चली। इसीलिए दहेज का दानव यहाँ बढ़ता ही गया। लड़कियां पिता की पसंद के लड़के से ब्याही जाने को अभिशप्त रहीं। इसका असर यह हुआ कि बेमेल ब्याह होने लगे और समाज में लड़कियां घूंट-घूंट कर जीने-मरने को बिवश हो गईं।
इस मुहिम को मिथिलांचल के गाँव-गाँव में प्रचारित-प्रसारित करने हेतु आधुनिक संचार माध्यमों के साथ- साथ पारंपरिक उपायों का भी सहारा लिया जा रहा है। पूरे देश में फैले सदस्य अपने-अपने तरीके से इस मुहिम को प्रचारित कर रहे हैं।
एक समय मिथिलांचल में सौराठ सभा काफी लोकप्रिय था जहां विवाह योग्य युवक अपने परिवार के साथ उपस्थित होते थे और कन्या पक्ष वहाँ जाकर अपनी कन्या के लिए योग्य वर का चुनाव करते थे। यह प्रथा दरभंगा महाराज ने शुरू कारवाई थी। शुरुआती दिनों में संस्कृत के विद्वानों की मंडली शाश्त्रार्थ के लिए वहाँ जाती थी। राजा की उपस्थिति में शाश्त्रार्थ में हार-जीत का निर्णय होता था। यदि कोई युवा अपने से अधिक उम्र के विद्वान को पराजित करता था तो उस युवक के साथ पराजित विद्वान अपनी पुत्री की शादी करवा देता था । बाद में यह सभा बिना शाश्त्रार्थ के ही योग्य वर ढूँढने का जरिया बन गया। आधुनिक काल के लोगों ने इस सभा को नकार कर मिथिलांचल की अभिनव प्रथा को खत्म करने का काम किया।
संस्था के सलाहकार वरिष्ठ आयकर अधिकारी ओमप्रकाश झा कहते हैं की मिथिलांचल को अपनी पुरानी प्रथा के जरिये ही सुधार के रास्ते पर आना होगा। प्रतिवर्ष सौराठ सभा का आयोजन हो और लोग योग्य वर ढूँढने के लिए वहाँ आयें जिसमें पहली शर्त हो की दहेज की कोई बात नहीं होगी तो दहेज पर लगाम लगाना संभव हो सकता है। पहले भी सौराठ में दहेज प्रतिबंधित था। विवाह में बाराती की संख्या पर भी अंकुश लगाने की जरूरत है। संप्रति देखा जा रहा है कि मिथिललांचल में शादियों में बारातियों की संख्या और उनके खान-पान की फेहरिस्त बढ़ती ही जा रही है। गरीब तो दहेज से अधिक बारातियों की संख्या से डरता है।
बात सिर्फ आर्थिक लेन-देन तक सीमित हो तो भी कोई बात है। अब तो कन्या के साथ साज-ओ-सामान की जो फेहरिस्त प्रस्तुत की जाती है वह बड़ों-बड़ों के होश उड़ा देता है। उस पर भी आलम यह है कि अधिकतर लड़कियां विवाह के बाद दुखमय जीवन बिताने को मजबूर है क्योंकि स्थानीय स्तर पर कोई उद्योग नहीं है और परदेश में खर्च का जो आलम है वह किसी से छुपा नहीं है।


दहेज मुक्त मिथिला” आंदोलन के जरिये मैथिल समाज में सुधार की एक नयी धारा चलाने में जुटे लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौती मैथिल समाज के उन लोगों से आएगी जो महानगरों में रहकर अच्छी नौकरी या व्यवसाय के जरिये आर्थिक रूप से समृद्ध हो चुके हैं और दहेज को अपनी सामाजिक हैसियत का पैमाना मानते हैं। ऐसे लोग निश्चित रूप से विकल्प की तलाश में इस आंदोलन को कुंद करने का प्रयास करेंगे जिसे सामूहिक सामाजिक प्रतिरोध के जरिये ही रोका और दबाया जा सकता है। कुछ राजनेता जो अपने को मैथिल समाज का मसीहा मानते हैं उनके लिए भी ऐसा आंदोलन रुचिकर नहीं है। पर वक़्त की जरूरत है कि यह क्षेत्र ऐसे आंदोलनों के जरिये अपने में सुधार लाये।

गजल @प्रभात राय भट्ट

                 गजल
अहाँ सं हम प्रगाढ़ प्रेम करैत  छि 
अहाँ किएक इ अपराध बुझैत छि 
 
जिन्गी अछि हमर अहींक नाम धनी 
हमरा किएक बदनाम बुझैत छि
 
हमर आँखी अहांके  दुलार  करैय
नैन किएक हमरा सं झुकबैत छि
 
अछि मोनक मिलन प्रेमक संगम 
अहाँ किएक प्रेम इन्कार करैत छि
 
हम छोड़ी देलहुं सब काज सजनी 
बस अहींक नाम लिखैत रहैत छि
 
बिसारि देलहुं हम अलाह ईश्वर
प्रेम केर हम  इबादत करैत छि  
 
प्रेम छै पूजा,छै प्रेम सच्चा समर्पण 
अहिं कें हम अपन जिन्गी बुझैत छि
................वर्ण -१४...................
रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

गीत @प्रभात राय भट्ट

                 गीत  
यौ  पिया मारु नै जुल्मी नजरिया
की लच लच लचकय मोर कमरिया //२ मुखड़ा

हमर  मोन  नै बह्काबू यौ पिया
रखु अहां अपना दिल पर काबू
कोमल कोमल अंग की मोर बाली उमरिया
थर थर कापे देह की धक् धक् धरके जिया

ऐ धनी लचकाबू नै पतरकी कमरिया
की मोन भेल जैय हमर बाबरिया
देख अहाँक सोरह वसंतक चढ़ल जवानी
धनी बहकल जैय हमरो  जुवानी

यौ पिया हम सभटा बात बुझैतछि
हमरा संग अहां की की कS  र चाहैतछि
छोड़ी दिय ने आँचर पिया
की धक् धक् धर्कैय हमर जिया

एखन नै जाऊ सजनी छोड़ी कें
हमर मोनक उमंग झकझोरी कें
ये गोरी आब एतेक नै नखरा धरु
की झट सं प्रेमक मिलन करू

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट


रविवार, 5 फ़रवरी 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट


                                       गजल
चंचल मोनक भीतर परम चैतन्य उर्जा सुषुप्त भेल अछि 
मोह लोभ क्रोध रिस रागक तेज सं आत्मा सुषुप्त भेल अछि

दुष्ट  मनुख आतुर अछि करैए लेल मनुखक सोनित पान
दानवीय प्रबृति केर दम्भ सं मानव रूप विलुप्त भेल अछि

जन्मलैत छलहूँ बालेश्वर, कुमारी कन्या पूजैत छल संसार
आयु बढ़ैत सभ सुमति बिसारि कुमति संग गुप्त भेल अछि

स्वार्थलिप्सा केर आसक्त मनुख जानी सकल नहीं जीवन तत्व
परालौकिक परमानन्द बिसारि सूरा सुंदरी में लिप्त भेल अछि

दुर्जन बनल संत चरित्रहीन महंथ बदलैत ढोंगी रूप
अकर्मनिष्ठक कुकर्म सं गुण शील विवेक सुषुप्त भेल अछि
....................वर्ण-२४......................................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट 

गजल@प्रभात राय भट्ट

                         गजल   
खुबसूरत बाजार में, मैं ही बस एक बदसूरत हूँ 
जीता जगता इन्सानी चोला का, मैं तो बस एक मूरत हूँ
 
नजरों की निगाहें से, मुझे तो इस तरह देखा न करो 
दिल की नजरों से देखो तो, मैं भी परी  जैसी खुबसूरत हूँ
 
चेहरे की चमक पर कत्लेआम है, दीवाना इस जहाँ में
है दिल की जमाल रौशन जिन्दगी, मैं  भी खुबसूरत हूँ
 
ऐ दीवाने दिल की चमक पहचानलो, हमको जानलो 
तू मुझे चाहो या न चाहो, सायद मैही तेरा जरुरत हूँ
 
बदन  की प्यास न बुझे सही, मन की तृष्णा मैं मिटा दुँगी
तन से नहीं मैं तो मन से जीनेवाली प्रेम की मूरत हूँ
...........................वर्ण २१........................................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

              गजल:-
एकटा स्वपनपरी हाथ लेने गुलाब छै
चन्द्रमा सन मुह पर लगौने नकाब छै
 
रौशनी नुकाबी से नकाबक ऑकाद कहाँ 
पारदर्शी चेहरा पर धेन आफताब छै
 
बिजलीक छटा सावन भादवक घटा छै
सोरह वसंतक जोवन पिने सराब छै
 
मदिरा में कहाँ जे हुनक अधर में मात
मातल जोवन रस छलकौने सराब छै
 
हुनक नयन मातली लगैछ मधुशाला
ठोरक पियाला में ओ जाम धेन वेताब छै
 
जाम पिबैलेल कतेको दीवाना बेहाल छै
रोमियो मजनू सब हाथ लेने गुलाब छै
 
हुनक जोवंक महफिल राग सजल छै
ओ श्रिंगार रासक गजल नेने किताब छै
..................वर्ण १६ ....................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल@ प्रभात राय भट्ट

भ्रष्टाचारी सबहक बनल छै सरकार यौ
देशक राजनेता सभ बनल छै गद्दार यौ


झूठ फरेबक खेती में इ सभ अछि लागल
सचाई सं मुह मोड़ी भागल सब मकार यौ


जातपातक नाम पैर कराबैय दंगा फसाद
गरीबक बेट्टा के दैय लड़ लेल हकार यौ


सत्ता शाशन लेल करैय मात्रिभुमिक सौदा
स्वार्थलेल सौदागर नेता भSगेल लचार यौ


बेच देलक धरती गगन चैन अमन कें
नीलामी भेल स्वाभिमान बिकगेल विचार यौ
................वर्ण-१७.........................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

भेदभावों की चिंगारी @प्रभात राय भट्ट

भेदभावों की चिंगारी ने 
हमारे  पूर्वजों की आत्मा को जलाया था 
जलते हुए आत्माओं का अंगार बनके 
मै इस जहाँ में आया था
मेरे साथ भी वही हुवा 
जो न होना था !!
 
मैंने  उस दुःख दर्द को
बड़ी मुश्किल से झेला था
आप तो एक बार मरोगे
मै तो सौ बार मरा था !!
 
फिर मैंने मेरे सोये हुए
आत्मा को जगाया था
मेरी आत्मा मुझे
दुत्कार रही थी
मेरी आत्मा मुझे
ललकार रही थी
मेरी आत्मा मुझे से
चीत्कार रही थी !!
 
उठो जागो मांगो अपना अधिकार
मिटा दो भेदभावों की अहंकार
बनालो अपनी खुद का पहिचान
तेरा स्वाभिमान से बढ़कर
इस जहाँ में कुछ और तो नहीं!!
 
जरा याद करो
स्वाभिमानी युग पुरुष को
तेरा पहिचान बनाने की खातिर
रघुनाथ ठाकुर चढ़ें थे वलिदान
दुर्गानन्द झा ने भी दी थी कुर्वानी
गजू बाबु की क्या कहना
उन्होंने ही तो बचा राखी थी
हम सबों की पहिचान !!
 
रमेश मंडल की आहुति से
हुवा था युगांतकारी संग्राम
मधेश आन्दोलन को
मिली था एक नयी आयाम !!
 
हमारे बाजुवों में भी वह ताकत है
हम बदल देंगे
अपनी हाथो की लकीरों को
तोड़ देंगे गुलामी की जंजीरों को   !!
 
आओ मेरे जिगर वाले भाइयों
अपना मंजिल
अपना यासियाना बनातें है
हम सब मिलके 
स्वतंत्रता की गीत गातें है
एक मधेश एक प्रदेश  बनाते है  
मातृभूमि को स्वतंत्र करके
पुत्र धर्म निभाते है !!
जय मधेश !! जय मधेश !! जय मधेश !!
 
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

गीत@ प्रभात राय भट्ट

गीत@ प्रभात राय भट्ट
 
सुन सुन रे  सुन पवन पुरबैया 
की लेने चल हमरो अप्पन गाम  
हमर जन्मभूमि वहि ठाम
जतय छै सुन्दर मिथिलाधाम //२
 
देश विदेश परदेश घुमलौं
मोन केर भेटल नहीं आराम
साग रोटी खैब रहब अप्पने गाम
जतय छै सुन्दर मिथिलाधाम //२
 
घर घर में छन्हि बहिन सीता
राजर्षि जनक सन पिता
सभ केर पाहून छथि राम
जतय छै सुन्दर मिथिलाधाम //२
 
काशी घुमलौं मथुरा घुमलौं
घुमलौं मका मदीना
सभ सँ पैघ विद्यापति केर गाम
जतय छै सुन्दर मिथिलाधाम //२
 
हिमगिरी कोख सँ बहैय कमला कोशी बल्हान
तिरभुक्ति तिरहुत छै जग में महान
दूधमति सँ दूध बहैय छै वैदेहीक गाम
जतय छै  सुन्दर  मिथिलाधाम //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट