गजल
एसगर कान्ह पर जुआ उठौने,कतेक दिन हम बहु
दर्द सं भरल कथा जीवनके,ककरा सं कोना हम कहू अपने सुख आन्हर जग,के सुनत हमर मोनक बात
कहला विनु रहलो नै जाइय,कोना चुपी साधी हम रहू
अप्पन बनल सेहो कसाई,जगमे भाई बाप नहीं माए
सभ कें चाही वस् हमर कमाई,दुःख ककरा हम कहू
देह सुईख कS भेल पलाश,भगेल हह्रैत मोन निरास
बुझल नै ककरो स्वार्थक पिआस,कतेक दुःख हम सहुमोन होइए पञ्चतत्व देह त्यागी,हमहू भS जाए विदेह
विदेहक मंथन सेहो होएत,कोना चुपी साधी हम रहू नैन कियो करेज,कियो अधिकार जमाएत किडनी पर
होएत किडनीक मोलजोल, सेहो दुःख ककरा हम कहू बेच देत हमर अंग अंग, रहत सभ मस्ती में मतंग
बजत मृदंग जरत शव चितंग सेहो कोना हम कहू.........................वर्ण:-२२.............................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
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