कविता @ प्रभात पुनम
हे अहा सब
झगरा जुनि करि
कने हमरो गप सुनि
किनको सतौने अछ
शित्लहरी
त किनको बैशाखक
दुपहरी
कियो मगैत छि
स्नेहक तप्त
कियो होबए चाहैत छि
जस स तृप्त
हम नैना भुटका कए
फिकर ककरो ऐछ
सितलहरी हुये कि दुपहरी
मोटका मोटका किताबक
बोझ उठउने
काग कुचरैत
घर स बहरैत छि
स्या स्या करैत
स्कुल पहुचैत छि
भुखल पेट ,कपा लपेट
अप्स्यात भेल, साझ
घर पहुचैत छि
ममि पपा मे नित दिन
झगडा देखैत छि
जुनि समय भेट्ए कि
कने हमरो हाल चाल पुछि ।
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