गुरुवार, 7 जून 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

          गजल
आजुक दुनियां में सब किछ विकाऊ भsगेलै
अनैतिक कुकर्म करैबला कें नाऊ भsगेलै

बेच अप्पन इज्जत कमबै छै टाका रुपैया
ठस ठस गन्हईत छौड़ी सभ कमाऊ भsगेलै

उठलै लोकलाजक पर्दा भsगेलै गर्दा गर्दा
चौक चौराहा नगरबधू के गाँउ ठाऊ भsगेलै

इज्जत केर धज्जी उर्लै एलै केहन जवाना
पुलिस प्रहरी थाना एकर जोगाऊ  भsगेलै

             वर्ण -17
रचनाकार--प्रभात राय भट्ट

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

b