मंगलवार, 12 जून 2012

गजल

                     गजल

ई हमर दुर्भाग्य नहि जे अहाँक सनेह पाबी नहि सकलौं
अहाँ बुझैत छि दोष हमर अहाँक नाम जापी नहि सकलौं

नहि जानी किएक क्रोद्ध देखबैछी ईर्ष्याभाव सेहो करैतछी
क्रोद्ध तामस सं मातल आगिक आंच हम तापी नहि सकलौं

दम्भ अहंकार सद्दति अछि अहाँक क्रुद्ध संस्कारक स्वाभाव
गुण शील विवेकक अछि आभाव से हम भांपी नहि सकलौं

अपने शुद्ध जग अशुद्ध अहाँक परिपाटी हम जानी गेलौं
विशुद्ध मोती केर ज्योति पर अहाँ नजैर ताकि नहि सकलौं
-----------वर्ण-२३---
प्रभात राय भट्ट

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

b