मंगलवार, 31 जनवरी 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

            गजल
कुमुदिनी  पर  भँभर  किये  मंडराईय
यौ पिया कहू नए दिल किये घबराईय  
 
भँभर कुमुदिनी सं मिलन करैत छैक
ये सजनी अहांक दिल किये घबराईय
 
मोनक बगिया में नाचैय मोर मयूर यौ
मोनक उमंग सं दिल किये घबराईय
 
अहाँक  रोम रोम में अछि प्रेमक तरंग
 प्रेमक  तरंग  सं  दिल किये घबराईय
 
प्रीतक बगिया में कुहकैय छैक कोईली
मधुर स्वर सुनी दिल किये घबराईय
 
मोन उपवनमें भरल प्रीतक श्रिंगार
मिलन  कय  बेर दिल किये घबराईय
...............वर्ण:-१६...............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

सोमवार, 30 जनवरी 2012

गजल@ प्रभात राय भट्ट

            गजल   
आब कहिया तक  रहतै, हमर मोन उदास यौ पिया
होलीमें गाम एबैय,तोड़ब नै हमर विस्वास यौ पिया 

अहांक  ईआद  में  तर्सल जिया,बरसल नैना सं नीर
बैषाखी बीत बरषलै सावन,बुझलै नै प्यास यौ पिया

सुकसुकराती  दियाबाती, बितगेल  दष्मी  दशहरा  यौ 
छैठो में गाम नै एलौं, तोड़ी देलौं मोनक हुलास यौ पिया  

मोन भ S गेल आजित, कहिया भेटत अहाँक दुलार  यौ
एबेर फागुमें अहाँ आएब,मोन में अछि आस यौ पिया 

जौं गाम नै आएब, हमर मुइलो  मुह  देख नै पाएब
फेर ककरा संग करब, प्रीतक भोग विलास यो पिया 
....................वर्ण:-२१..............................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट


रविवार, 29 जनवरी 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

             
             गजल  
मिथिलाक पाहून भगवान श्रीराम छै
जग में सब सं सुन्दर मिथिलाधाम छै
 
मिथिलाक मईट सं अवतरित सीता
जग में सब सं सुन्दर हुनक नाम छै
 
मिथिलाक शान बढौलन महा विद्द्वान
कवी कोकिल विद्यापति हुनक नाम छै
 
भS जाएत अछि सम्पूर्ण पाप तिरोहित
मिथिला एकटा पतित पावन धाम छै
 
भेटत नै एहन अनुपम अनुराग
प्रेम परागक  कस्तूरी मिथिलाधाम छै
 
घुमु अमेरिका अफ्रीका लन्दन जापान
जग में नै कोनो दोसर मिथिलाधाम छै
 
मिथिला महातम एकबेर पढ़ी  जनु
मिथिला सं पैघ नै कोनो दोसर धाम छै
 
जतय भेटत कमला कोशी बलहान
अयाचिक दलान,वही मिथिलाधाम छै
 
गौतम कपिल कणाद मंडन महान
प्रखर विद्द्वान सभक मिथिलाधाम छै
 
ऋषि मुनि तपश्वी  तपोभूमि अहिठाम छै
"प्रभात"क गाम महान मिथिलाधाम छै
.............वर्ण:-१५...........
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

गजल @प्रभात राय भट्ट

       गजल
हम अहां केर  प्रीतम नहि बनी सक्लहूँ
मुदा अहांक करेजक दर्द बनी गेलहुं

अहां हमर प्रेम दीवानी बनल रहलौं
हम अहांक दीवाना नहि बनी सक्लहूँ

अहां हमर प्रेम उपासना करैत गेलौं
हम आनक वासना शिकार बनी गेलहुं 

अहांक कोमल ह्रदय तडपैत रहल
हम बज्र पाथर केर मूर्ति बनी गेलहुं 

हम अहांक निश्च्छल प्रेम जनि नै सकलौं
अनजान में हम द्गावाज बनी गेलहुं 

आब धारक दू किनार कोना मिलत प्रिये
मजधार में हम नदारत बनी गेलहुं
................वर्ण:-१६ ...............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

गीत@प्रभात राय भट्ट



बसु दरभंगा मधुवनी चाहे जनकपुर
हम सभ छि मिथिलावासी रहू जतय दूर
बसु बिराटनगर राजविराज चाहे लहान
हम सभ मिथिलावासी हमर मिथिला महान

बसु सीतामढ़ी शिवहर चाहे मुजफरपुर
हम सभ छि मिथिलावासी रहू जतय दूर
घर आंगनमे बहैय हमरा कमला कोशी बल्हान
भाईचारा प्रेम देखैला चालू अयाचिक दलान

राजर्षि जनक आँगन अवतरित भेल्हीं जनकदुलारी
मिथिला केर पाहून बनलाह राम लखन धनुषधारी
बसु मलंगवा जलेश्वर चाहे समस्तीपुर
हम सभ छि मिथिलावासी रहू जतय दूर

मिथिलाक गौरव मंडन कपिल कणाद वाचस्पति
जन जन केर आत्मा छथि कवी कोकिल विधापति
बसु अररिया खगड़िया चाहे भागलपुर
हम सभ छि मिथिलावासी रहू जतय दूर 

बसु सहरसा सुपौल मधेपुरा चाहे पूर्णिया
सम सभ छि मिथिलावासी जनै समूचा  दुनिया
बसु नेपाल बिहार मुंगेर कटिहार चाहे बेगुसराय
हम सभ छि मिथिलावासी  कियो  नहि  पराय  

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

बुधवार, 25 जनवरी 2012

रखु सम्हईर जुवानी जिआन नै करू@ प्रभात राय भट्ट

गीत
छोड़ी दिय आँचर पिया परेशान नै करू
सदिखन प्रेमलीला पैर एतेक धियान नै धरु
रखु सम्हैर जुवानी  जिआन  नै करू   
होबए दिय कने राईत एखन हैरान नै करू   

प्रेम  सागर  में  डुबकी  लगाएब  हम  अहांक  संग 
मोन के सम्हैर  रखु पिया एखन नै करू तंग 
अरमान अहांक पुराएब हमरो मोन में अछि उमंग  
रखु मोन पैर काबू पिया हम आएब अहांक संग

सास  मोर  आँगन  नंदी  बैसल  छथि  ओसार 
ससुर मोर दलान दियर जी बैसल छथि दुवार
लाज सरम सं देह कपैय नीक लगैय नहि दुलार
पैयाँ परैतछि सैयां जी खोलिदिय नए केवार

घरक मर्यादा रखु पिया करू नै नादानी
घर केर जुनी बुझियौ बलम फ़िल्मी कहानी
लोक बेद्क रखु मन बनू नै अज्ञानी
छोड़ी दिय आँचर सैयां करू नै मनमानी 

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट





मंगलवार, 24 जनवरी 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

                    गजल
आई हमर मोन एतेक उदास किये
सागर पास रहितों मोनमें प्यास किये

निस्वार्थ प्रेम  ह्रिदयस्पर्श केलहुं नहि
आई मोनमे बहै बयार बतास किये   

हम प्रगाढ़ प्रेमक प्राग लेलहुं नहि 
आई प्रीतम मोन एतेक हतास किये  

प्रेम  स्नेह  सागर  हम  नहेलहूँ नहि 
आई प्रेम मिलन ले मोन उदास किये   

हम मधुर मुस्कान संग हंस्लहूँ नहि   
आई दिवास्वपन एतेक मिठास किये  

"प्रभात" संग पूनम आएत आस किये  
नहि आओत सोचिक मोन उदास किये  
.................वर्ण-१५............................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट  

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

 गजल
विछोड्क व्यथा पीड़ा सं अछि हमर करेज फाटल   
सुईया धागा सं नै सिआयोत हमर करेज फाटल

कियो धका नै मारू हम सुखल गाछक ठाएरह  छि
ईआदक प्रेमलसा सं अछि हमर करेज साटल

प्रेम रोगी प्रितक मारल मरि मरि हम जिवैतछी
द्गावाज तलवार सं अछि हमर करेज काटल

ओ हाथ मे मेहँदी लगौने छथि हमर लाल खून सँ
हुनक  मांग  मे सिंदूर  देख  हमर  करेज  फाटल 

आनक संग ओ वेदिक सात फेरा लगबैत गेल्हिन
वेदिक आगि सँ जरल प्रेम हमर करेज फाटल

दर्द व्यथा की होएत अछि हमरा सँ कियो नहीं पुछू
दर्द वेदना सँ अछि "प्रभात" हमर करेज फाटल
.............वर्ण:-२० ......................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 5 जनवरी 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

                   गजल
अहां एना नए करू दिल बहकतै हमर
फेर अहां विनु कोना दिल सम्हरतै हमर 

अहांक संगही रहब हम जन्म जन्म तक
पिया अहां विनु कोना दिल धरकतै हमर 

रस भरल अंग अंगमें चढ़ल जोवनके
रसपान विनु कोना दिल चहकतै हमर 

नीसा लागल अछि बलम हमरो मिलनके
अहां विनु कोना प्रेमनीसा उतरतै हमर 

जे नीसा अहांक अधरमें ओ मदिरा में कहाँ
फेर पिने विनु कोना नीसा उतरतै हमर 

पिया पीब लिय पिला दिय जोवन रस जाम
पी विनु ठोरक प्याला कोना छलकतै हमर 
...............वर्ण-१७ ............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट  

सोमवार, 2 जनवरी 2012

गजल @प्रभात राय भट्ट

             गजल
उईर जो रे पंक्षी नील गगन में
ल चल हमरो स्वच्छंद पवन में

जतय नै छैक कोनो सालसिमाना
उडैत रहब स्वच्छंद पवन में

रोईक सकत नै  टोईक सकत
जे कियो हमरा स्वच्छंद पवन में

करी बादल गर्जत मेघ पडत
रमन करब स्वच्छंद पवन में

करब दुरक दृश्य अवलोकन
मोन मग्न रहब नील गगन में

विचरण करी हम जनजन में
इच्छा "प्रभात"क मोन उपवन में
................वर्ण:-१३...............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

रविवार, 1 जनवरी 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

                  गजल
हम तं कागज कलमक संयोग करबैत छी
कागज पैर शब्दक गर्भधारण करबैत छी 

कागज सियाहिक स्पर्श ले मुह बयेने रहैय
हम तं कागजक भाव बुझी किछु लिखदैत छी 

कागज जखन प्रसव पीड़ा सं छटपटाएत
तखन हम मोनक भाव सृजना करबैत छी 

मोनक उद्द्वेग कोरा कागज पैर उतरैय
लोग कहैय अहां बड निक रचना रचैत छी 

हम तं स्वर लय मात्र छन्द इ किछु नहीं जानी
लोग कहैय अहां बड निक गीत लिखैत छी 

हम तं वर्ण रदीफ़ काफिया किछु नै जनैत छी
लोग कहैय अहां बड निक गजल लिखैत छी 
.........................वर्ण:-१८........................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट