शनिवार, 31 मार्च 2012

तुझे नेता कहू तो कैसे कहूँ ??@प्रभात राय भट्ट

तुझे नेता कहू तो कैसे कहूँ ??
तुझ में नेतृत्व की क्षमता है ही  नहीं
जो स्वार्थनीति में आसक्त हो
ओ क्या जाने राजनीती
राजनीती में जाहिल गवार हो तो क्या हुवा ?
तुम तो एक सौदागर हो
सौदा करने में माहिर भी हो
मुनाफा के लिए
गिरबी रख देते हो अपने माँ को
बेचदेते हो अपने वतन को
मोटी रकम मिलने पर
खुद भी बिक जाते हो

तुझे नेता कहू तो कैसे कहूँ ??
तुझ में नेतृत्व की क्षमता है ही नहीं
तिन पार्टी में तेरह गुट
पद पैसों  के लिए जाते हो फुट
तुम सारे के सारे पंगु नेता
स्वार्थलिप्सा में  हो वशीभूत  
ना तेरा कोई सिधान्त है
ना तेरा कोई जातपात है
तुम सारे गद्दार नेता का एकही जमात है

तुझे नेता कहू तो कैसे कहूँ ??
तुझ में नेतृत्व की क्षमता है ही नहीं
लूटपाट की खलबली मची है
तेरे घर की ईंट ईंट में
भ्रष्टाचारी की रंग लगी  है
तेरे बीबी की गहने में भी
भ्रष्टाचारी की छाप लगी है
तेरे बच्चो को सभी कहते है
गद्दार नेता तेरा बाप है
तू गद्दार की रजबीज का एक छाप है
भ्रष्टाचारी की बू
तेरे जिश्म से जाती ही नहीं  
लाज शर्म तो तुम्हे आती ही नहीं
तुझे नेता कहू तो कैसे कहूँ ??
तुझ में नेतृत्व की क्षमता है ही नहीं
रचनाकार:- प्रभात राय भट्ट

शुक्रवार, 30 मार्च 2012

गीत@प्रभात राय भट्ट

गीत:-

लचक लचक लचकै छौ गोरी तोहर पतरी कमरिया
ठुमैक ठुमैक चलै छे गोरी गिरबैत बाट बिजुरिया //२      
देख मोर रूपरंग मोन तोहर काटै चौ किये अहुरिया
सोरह वसंतक चढ़ल जुवानी में गिरबे करतैय बिजुरिया //२     मुखड़ा

चमक चमक चमकैय छौ गोरी तोहर अंग अंग
सभक मोन में भरल उमंग देखैला तोहर रूपरंग
ठुमैक ठुमैक चलै छे गोरी गिरबैत बाट बिजुरिया
रूप लगैय छौ चन्द्रमा सन देह लगैय छौ सिनुरिया //२

सोरह वसंतक चढ़ल जुवानी में गिरबे करतैय बिजुरिया
देख मोर रूपरंग मोन तोहर काटै चौ किये अहुरिया
 लाल लाल मोर लहंगा पर चमकैय छै सितारा
देख मोर पातर कमर मोन तोहर भेलौं किया आवारा //२

अजब गजब छौ चाल तोहर गोरिया गोर गोर गाल
कारी बादल सन केश तोहर ठोर छौ लाले लाल
चमकैय छे तू जेना चमकैय गगन में सितारा
देख के तोहर रूपक ज्योति मोन भेलैय हमर आवारा //२

मस्त मस्त नैयना मोर गोर गोर गाल
जोवनक मस्ती चढ़ल हमर ठोर लाले लाल
चमकैय छै मोर रूप जेना चमकैय अगहन के ओस
देख के मोर चढ़ल जुवानी उडीगेलय सभक होस //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 29 मार्च 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट


               गजल

फुलक डाएरह सुखल सुखल फुल अछी मुर्झाएल
वितल वसंत आएल पतझर देख पंछी पड़ाएल


भोग विलासक अभिलाषी प्राणी तोहर नै कुनु ठेगाना
आई एतय काल्हि जएबे जतय फुल अछी रसाएल


अपने सुख में आन्हर प्राणी की जाने ओ आनक दुःख
दुःख सुख कें संगी प्रीतम दुःख में छोड़ी अछी पड़ाएल


कांटक गाछ पर खीलल अछी मनमोहक कुमुदिनी
कांट बिच रहितो कुमुदनी सदिखन अछी मुश्काएल


बुझल नहीं पियास जकर अछी स्वार्थी महत्वकांक्षा
होएत अछी तृप्त जे प्रेम में सदिखन अछी गुहाएल


अबिते रहैत छैक जीवन में अनेको उताड चढ़ाव
सुख में संग दुःख में प्रीतम किएक अछी पड़ाएल
...........वर्ण-२१...................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल@प्रभात राय भट्ट




   गजल
तड्पी तड्पी हम जीबैत छि
कहू धनी अहाँ कोना रहैत छि

एसगर निक नै लगैय धनी
अहींक सुरता हम करैत छि

हमरो विनु तडपैत छि अहाँ
से सोची सोची हम मरैत छि

मोन हमर कटैय अहुरिया
अहींक सपना हम देखैत छि

अहाँ हमरा सपना में आबी कें
हमरा पर प्रेम लुटबैत छि

मधुर बोली आर मादकता सँ
हम चरम उत्कर्ष पबैत छि

प्रभातक किरण आईख पर
परीते नीन सँ हम जागैत छि

सपना तं वस् सपना होईए
विछोड्क पीड़ा सँ तडपैत छि
.......वर्ण:-१२............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट


सोमवार, 26 मार्च 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

               गजल:-
अप्पन आन सभ लेल अहाँ चिन्हार बनल छि
आS हमरा लेल किएक अनचिन्हार बनल छि

अहाँ एकौ घड़ी हमरा विनु नहीं रहैत छलौं
आई किएक हम अहाँ लेल बेकार बनल छि

कोना बिसरल गेल ओ प्रेमक पल प्रीतम
हमरा बिसारि आन केर गलहार बनल छि

हमर प्रीत में की खोट जे देलौं हृदय में चोट
अहाँक प्रीत में आईयो हम लाचार बनल छि

दिल में हमरा प्रेम जगा किया देलौं अहाँ दगा
दगा नै देब कही कs किएक गद्दार बनल छि

..................वर्ण:-१८............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शनिवार, 24 मार्च 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

             गजल
अनचिन्हार सं जहिया चिन्ह्जान  बढल
तहिया सं हमरा नव पहिचान भेटल

विनु भाऊ बिकैत छलहूँ हम बाजार में
आई अनमोल रत्न मान सम्मान भेटल

काल्हि तक हमरा लेल छल अनचिन्हार
आई हमरा लेल ओ हमर जान बनल

अन्हरिया  राईत में चलैत छलहूँ हम
विनु ज्योति कहाँ कतौ प्रकाशमान भेटल

प्रभात केर अतृप्त तृष्णा ओतए मेटल
जतए अनचिन्हार सन विद्द्वान भेटल
.............वर्ण:-१६.................
रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट


बुधवार, 21 मार्च 2012

परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ@प्रभात राय भट्ट

मिथिला के हम बेट्टी छि मैथिलि हमर नाम यौ
जनक हमर पिता छथि जनकपुर हमर गाम यौ
जगमे भेटत नै कतहूँ एहन सुन्दर मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ

मिथिला के हम बेट्टा ची मिथिलेश हमर नाम यौ
मिथिला के हम वासी छि जनकपुर हमर गाम यौ
ऋषि महर्षि केर कर्मभूमि अछि मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ

मिथिलाक मैट सं अवतरित भेल्हीं सीता जिनकर नाम यौ
उगना बनी महादेव एलाह पाहून बनी कय राम यौ
धन्य धन्य अछि मिथिलाधाम,मिथिलाधाम जगमे महान यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ

हिमगिरी के कोख सं ससरल कमला कोशी बल्हान यौ
मिथिला के शान बढौलन मंडन,कुमारिल,वाचस्पति विद्द्वान यौ
हमर जन्मभूमि कर्मभूमि स्वर्गभूमि मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ

कपिल कणाद गौतम अछि मिथिलाक शान यौ
विद्यापति के बाते अनमोल ओ छथि मिथिलाक पहिचान यौ
जगमे भेटत नै कतहूँ एहन सुन्दर मिथिलाधाम यौ
परम पावन पुन्यभूमि अछि अपने मिथिलाधाम यौ

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

मंगलवार, 20 मार्च 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

गजल-
अहाँ केर प्रेम में हम भेलौं बाबरिया
सुद्ध बुद्ध बिसारि हम देलौं सबरिया

प्रेमक गाछ पर अछि प्रेमक पलव
पलव पर नाम लिखी देलौं सबरिया

डरेछि हम कियो पलव नै तोड़ी दिए
सोंची सोंची प्रीतम हम भेलौं बाबरिया

मधुर मिलन केर  अछि आस लागल
दुनिया सं बांची कS हम एलौं सबरिया

भीख नै पियास अछि मिलन केर आस
जीवन में अहिं मिठास दलों सबरिया
............वर्ण-१५....
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

प्राचीन मिथिला@प्रभात राय भट्ट

मिथिला के मिथिलेश्वर महादेव हम की कहू यौ
स्वम अहाँ छि अन्तरयामी अहाँ सभटा जनैतछी यौ
बसुधाक हृदय छल हमर महान  मिथिला
इ  हमही  नै  शाश्त्र  पुराण  कहैय  यौ

मिथिलाक जन जन छलाह जनक एही  ठाम
ताहि लेल नाम पडल जनकपुर धाम
राजा जनक छलाह राजर्षि जनकपुरधाम में
सीता अवतरित भेलन्हि मिथिले गाम में

मिथिलाक पाहून बनी ऐलाह चारो भाई राम
विद्यापती के चाकर बनलाह उगना  एहि ठाम
चारो दिस अहिं छि महादेव जनकपुर के द्वारपाल
पुव दिस मिथिलेश्वरनाथ  पश्चिम जलेश्वरनाथ

उत्तर दिस टूटेश्वरनाथ दक्षिण कलानेश्वरनाथ
किनहू भs  सकय मिथिलाक प्राणी अनाथ
इ ध्रुव सत्य अछि प्राचीन  मिथिलाक  परिभाषा
एखुनो अछि एहन सुन्दर मिथिलाक अभिलाषा

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गजल@प्रभात राय भट्ट

                     गजल:-
अहाँ विनु जिन्गी हमर बाँझ पडल अछि
सनेह केर पियासल काया जरल अछि


दूर रहितो प्रीतम अहाँ मोन पडैत छि
प्रीतम अहिं सं मोनक तार जुडल अछि


तडपैछि अहाँ विनु जेना जल विनु मीन
अहाँ विनु जिया हमर निरसल अछि


नेह लगा प्रीतम किया देलौं एहन दगा
मधुर मिलन लेल जिन्गी तरसल अछि


अहाँ विनु प्रीतम जीवन व्यर्थ लगैय
की अहाँक प्रेमक अर्थ नहीं बुझल अछि
..............वर्ण-१६...........
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

रविवार, 18 मार्च 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

       गजल:-
वसंत ऋतू  में आएल सगरो वसंत बहार
वनस्पतिक पराग गमकौने अनन्त संसार


हरियर पियर उज्जर पुष्प आर लाले लाल
पुष्पक राग केर उत्कर्ष अछि वसंत बहार


झूमी रहल कियो गाबी रहल नाचे कियो नाच
पलवित भेल प्रेम मोन में अनन्त उद्गार


सीतल सुन्दर सजल बहैय वसंत पवन
मनोरम प्रकृतिक दृश्य अछि वसंत बहार


मोर मयूरक नृत्य मधुवन कुह्कैय कोईली
मधुर मुस्कान सगरो आनंद अनन्त संसार 


प्रेम मिलन मग्न प्रेमी पुष्पित वसंत बहार
मोन उपवन सुरभित भेल अनन्त संसार
.............वर्ण-१८.............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

गुरुवार, 8 मार्च 2012

निबंध प्रतियोगिता



निबंध प्रतियोगिता



दिल्ली सँ प्रकाशित मासिक मैथिलि पत्रिका मिथिलांचल पत्रिका के द्वारा कक्षा ८ सँ ल के बी.ए/बी.एस.सी/ बी.कॉम/इंजीनियरिंग /चिकित्सा विज्ञानं के छात्र हेतु एकटा निबंध प्रतियोगिता रखल गेल अछि .
निबंध के विषय :- "मातृभाषाक माध्यम सँ विज्ञानं एवं प्रोद्योगिकी के शिक्षा कतेक सार्थक अछि "
जाही में प्रतिभागी हेतु नियम :-
१. कक्षा ९ सँ - स्नातक तक के छात्र भाग लय सकैत छथि
२. उम्र सीमा - १२ वर्ष -२२ वर्ष
३.रचना मौलिक हेबाक चाही एवं स्व लिखित हेबाक चाही
४.आलेख मैथिलि भाषा में हेबाक चाही
५.रचना पठेबक अंतिम तिथि - २५ मार्च २०१२
६. प्रतिभागी लोकनि अप्पन आलेख mithilanchalpatrika@gmail.com
या B-2/333 Tara Nagar, Old Palam Road Sec-15 Dwarka New Delhi-110078. पर पठाबी
७. आलेखक संग अप्पन परिचय एवं पत्राचारक पता अबश्य पठाबी
८. विशेष जानकारी हेतु संपर्क करी Mob -9990065181  /  9312460150  / 09762126759.

निर्णयाक मण्डली में छैथि :- १.डॉ. कैलाश कुमार मिश्र २.डॉ. प्रेम मोहन मिश्र ३. श्री गजेन्द्र ठाकुर ४. डॉ. शशिधर कुमार
पुरस्कार :- निबंध प्रतियोगिता में चयनित प्रतिभागी के समुचित पुरस्कार राशी एवं प्रमाणपत्र पठौल जाएत

भबदीय
डॉ. किशन कारीगर
(संपादक ) मिथिलांचल पत्रिका

बुधवार, 7 मार्च 2012

रंग जीवन के सरसता प्रदान करैत अछि

जीवन अऔर रंगक बिच अन्योन्याश्रित सम्बन्ध थिक ! दुनु के भीतर एक दोसरक अस्तित्व विधमान अछि ! रंग जीवन के सरसता प्रदान करैत अछि तं जीवन रंग कें जीवन्तता प्रदान करैत अछि !मनुखक जन्म संगही रंग के प्रति अनुराग उमड़ लगैत अछि ताहि सं जीवनक हरेक छन आर हरेक रंग एक दोसर में समागम अछि ! रंगक त्यौहार होली मिथिला, भारत ,नेपाल लगायत संसारक विभिन्न देस में अलग अलग रूप सं मनाएल जाईत अछि ! होली असत्य के ऊपर विजयक प्रतिक अछि ! एकरा लोक भाषा में होरी सब्द सं संबोधित कैलजायेत अछि ! होरी के शाब्दिक अर्थ सेहो अपने आप में बड महत्वपूर्ण अछ -"ह" के अर्थ आकाश "र"के अर्थ अग्नि या तेज होएत अछ "ओ"प्रणव अऔर 'ई"शक्ति के स्वरुप अछ तेह होरी= सम्पूर्ण ब्रह्मांड तेजपूर्ण हो ! प्रेमक पर्व होली हर्ष उलासक संग सभ गोटे मनाएल करी आ सद्भाव भाईचारा प्रेम समाज में बनाबी याह कमाना करैत सभ मित्रगन में हमर अशेष सुभकामना !!!
होली पर्वक अवसर पर हमरा दिस सं किछ विशेष उपहार अहाँ सभक लेल :-
गजल:- होली
रंग विरंगक रसरंग सं भौजी के रंगाएल चोली
रंग उडैए छै अवीर उडैए छै देखू आएल होली

होली के रंग में रंगाएल सभक एकही रूपरंग
दोस्ती के रंग में रंगाएल दुश्मन देखू आएल होली

प्रेम स्नेहक पावैन होली गाबैए गीत फगुआ टोली
रसरंग सरोवर भेल दुनिया देखू आएल होली

रंग में रंगाएल शरीर गाबैए गीत जोगी फकीर
गाबैए जोगीरा बजाबैए मृदंग देखू आएल होली

रंग उड़ाबैए रंगरसिया कियो उड़ाबैए अवीर
तन मोन सभक रंगाएल देखू आएल होली

......................वर्ण-२०.............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
गजल
आब कहिया तक रहतै, हमर मोन उदास यौ पिया
होलीमें गाम एबैय,तोड़ब नै हमर विस्वास यौ पिया
 
अहांक ईआद में तर्सल जिया,बरसल नैना सं नीर
बैषाखी बीत बरषलै सावन,बुझलै नै प्यास यो पिया

सुकसुकराती दियाबाती, बितगेल दष्मी दशहरा यौ
छैठो में गाम नै एलौं, तोड़ी देलौं मोनक हुलास यौ पिया
 
मोन भ S गेल आजित, कहिया भेटत अहाँक दुलार यौ
एबेर फागुमें अहाँ आएब,मोन में अछि आस यौ पिया 

जौं गाम नै आएब, हमर मुइलो मुह देख नै पाएब
फेर ककरा संग करब, प्रीतक भोग विलास यो पिया
...................वर्ण:-२१..............................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
गीत :-
गाम आबिजाऊ हमर दुलरुवा पिया,आबिगेलई होली !!
अहि केर प्रेमक रंग स: रंगाएब हम अपन चोली !!
यी प्रेमक पाती में लिखरहल छि अपन अभिलाशाक बोली !!
अईबेर प्रभात भाईजी गाम अओता की नए पूछीरहल अछि फगुवा टोली !!
बौआ काका के दालान में बनिरहल अछि फगुवाक प्लान !!
चईल रहल छई चर्चा अहिके चाहे खेत होई या खलिहान !!
कनिया काकी कहै छथिन बौआ क देखला बहुते दिन भगेल !!
वित साल गाम आएल मुदा विना भेट केने चईल्गेल !!
अहाक संगी साथी सब एक मास पाहिले गाम आबिगेल्ल !!
अहाक ओझा २५ किल्लो क खसी आ भांगक पोटरी अहिलेल दगेल !!
 
गाम आबिजाऊ हमर दुलरुवा पिया जुड़ाउ हमर हिया !!
पूवा पूरी सेहो खिलाएब ,घोईर घोईर पियाएब हम अहाक भंग !!
अहि केर हाथक रंग स: रंगाएब हम अपन अंग अंग !!
रंग गुलाल अवीर उडाएब हम दुनु संग संग !!

गाम आबिजाऊ हमर दुलरुवा पिया,आबिगेलई होली
प्रेमक रंग स: तन मन रंगाएब एक दोसर के संग संग !!
रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट
 
होली मनाबू किछु हुर्दंग शेरक संग :-
१.होली में जकरा घर आएल सारी ओ भेल माला माल
सारी के चोली में रंग ढारी करे गोर गाल लाले लाल
जोगीरा सारा रा रा रा रा रा ..........................//२

२.भैयाक सारी रंग अवीर ल क चालली खेले लेल होली
सारी के रसरंग देखि बुढ्बो के मुह सं चूमा चूमा के बोली
जोगीरा सारा रा रा रा रा रा ..........................//२

३.बिच बाज़ार पारी जिका रम्कैय भैया के सारी
फगुवा टोली मरैय रंगक पिचकारी सारी के पछारी
जोगीरा सारा रा रा रा रा रा ..........................//२

४.होली में भैया पीब खजुरक तारी भेलाह मतंग
भौजी पीब दूध में घोरी भंग पडल बिच आँगन चितंग
जोगीरा सारा रा रा रा रा रा ..........................//२

५.पीब क भौजी भंग बिच आँगन पडल चितंग
भैया करे रासलीला छोटकी सारी के संग
जोगीरा सारा रा रा रा रा रा ..........................//२

६.होली के रसरंग सं उठल सारी के मोन में तरंग
सारी बनल आधा घरवाली सुतल बिच पलंग
जोगीरा सारा रा रा रा रा रा ..........................//२

७.भैया पीब तारी बिच बाज़ार पडल चितंग
भौजी खेले होली छोटका दियर जी के संग
जोगीरा सारा रा रा रा रा रा ..........................//२

८.दूर देस सं होली खेलS गाम एलाह हमर भैया
भौजी के चोली में रंग उझली भैया नाचे था था थैया
जोगीरा सारा रा रा रा रा रा ..........................//२
 

शनिवार, 3 मार्च 2012

gazal @prabhat ray bhatt

गजल:- होली
रंग विरंगक रसरंग सं भौजी के रंगाएल चोली
रंग उडैए छै अवीर उडैए छै देखू आएल होली

होली के रंग में रंगाएल सभक एकही रूपरंग
दोस्ती के रंग में रंगाएल दुश्मन देखू आएल होली

प्रेम स्नेहक पावैन होली गाबैए गीत फगुआ टोली
रसरंग सरोवर भेल दुनिया देखू आएल होली

रंग में रंगाएल शरीर गाबैए गीत जोगी फकीर
गाबैए जोगीरा बजाबैए मृदंग देखू आएल होली

रंग  उड़ाबैए  रंगरसिया  कियो  उड़ाबैए अवीर
तन  मोन  सभक  रंगाएल  देखू आएल  होली

......................वर्ण-२०.............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

गीत:-प्रभात राय भट्ट

गीत:-
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२

पंचतत्व रचित इ अधम शरीर
घाऊ अछि सभक मोन में गंभीर
सुख के खोज में दुनिया लागल
राजा रंक जोगी फकीर .............
हो भैया, राजा रंक जोगी फकीर
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर//
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२

सुख नहि हुनका भेटल जग में
जे दुःख सं मुह  मोड़ी पड़ाएल 

जराबू मोन में जीवन दर्शन ज्योति
दुःख क सागरमे भेटै छैक
सुख स्वरुप अपार हिरामोती
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर//
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२

भाग्य सं बढ़ी के जगमे किछु नहीं बलवान
पल में राजा रंक भेल विप्र बनल धनवान
राजपाठ सभ त्यागी भेल राम लखन वनवासी
बिक गेल राजा हरिश्चंद्र बनल डोमक दासी
हो भैया,राजा हरिश्चंद्र बनल डोमक दासी
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर //
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२

जीवन एक संघर्ष दुःख छै महा संग्राम
कांटक डगैर चलैत रहू लिय नै विश्राम
दुःख क संघर्ष सं भेटैय छै सुख आराम
दुःख सुख छै जीवन,जिनगी एकरे नाम
हो भैया,जिनगी एकरे नाम ..............
टुईट नै सकैय विधना के विधानक लकीर //
बदैल नै सकैय कियो अप्पन तक़दीर //२
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट


गुरुवार, 1 मार्च 2012

गीत:-प्रभात राय भट्ट

          गीत:-
अप्पन हारल बहुक मारल
हम दै छि सभटा बिसारि //२  मुखड़ा

कनिया हमर बड अलबेला
रोज रोज देखबैय नव खेला
हमरा बनौलक बादर
हमर कनिया बनल मदारी........
अप्पन हारल बहुक मारल
हम दै छि सभटा बिसारि ...//२


आँगन में लगैय रोज मेला
देखैला कनियाक नव नव खेला
नागिन जिका नाच करेय
दैय सब कय नव नव गारी
अप्पन हारल बहुक मारल
हम दै छि सभटा बिसारि //२

कनियाक चाही पलंग पर चाय
भानस भात सभटा करेय माए
सब कियो खैय रुखा सुखा
कनिया के चाही चैर पाँच गो तरकारी
अप्पन हारल बहुक मारल
हम दै छि सभटा बिसारि //२

कनिया हमर हठा पठा
खैय छै एक नाद घठा
मीट मछली रोज चाही
ऊपर सं खुवा मलाई पुष्टकारी
अप्पन हारल बहुक मारल
हम दै छि सभटा बिसारि //२

कनिया हमर बड बलवान
लगैय छै पठा पहलवान
अनेरे करेय छै रगरा झगरा
जौं कियो बाजल तं देय छै सभ के घीसारी
अप्पन हारल बहुक मारल
हम दै छि सभटा बिसारि //२

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट