गुरुवार, 29 मार्च 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट




   गजल
तड्पी तड्पी हम जीबैत छि
कहू धनी अहाँ कोना रहैत छि

एसगर निक नै लगैय धनी
अहींक सुरता हम करैत छि

हमरो विनु तडपैत छि अहाँ
से सोची सोची हम मरैत छि

मोन हमर कटैय अहुरिया
अहींक सपना हम देखैत छि

अहाँ हमरा सपना में आबी कें
हमरा पर प्रेम लुटबैत छि

मधुर बोली आर मादकता सँ
हम चरम उत्कर्ष पबैत छि

प्रभातक किरण आईख पर
परीते नीन सँ हम जागैत छि

सपना तं वस् सपना होईए
विछोड्क पीड़ा सँ तडपैत छि
.......वर्ण:-१२............
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट


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