गजल
खुबसूरत बाजार में, मैं ही बस एक बदसूरत हूँ
जीता जगता इन्सानी चोला का, मैं तो बस एक मूरत हूँ
नजरों की निगाहें से, मुझे तो इस तरह देखा न करो
दिल की नजरों से देखो तो, मैं भी परी जैसी खुबसूरत हूँ
चेहरे की चमक पर कत्लेआम है, दीवाना इस जहाँ में
है दिल की जमाल रौशन जिन्दगी, मैं भी खुबसूरत हूँ
ऐ दीवाने दिल की चमक पहचानलो, हमको जानलो
तू मुझे चाहो या न चाहो, सायद मैही तेरा जरुरत हूँ
बदन की प्यास न बुझे सही, मन की तृष्णा मैं मिटा दुँगी
तन से नहीं मैं तो मन से जीनेवाली प्रेम की मूरत हूँ
...........................वर्ण २१........................................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट
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