बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

गजल@प्रभात राय भट्ट

गजल
मतलब के सब संगी, मतलबी छै सब लोक
दुनिया में कियो नहि ककरो, स्वार्थी छै सब लोक

स्वार्थक वशीभूत दुनिया की जाने ओ प्रेम प्रीत
प्रेम पथ पर किएक कांट बोए छै सब लोक

दुष्ट सभक मोन में भरल छै घृणाक जहर
दोसर के सताबै में तृष्णा मेटाबै छै सब लोक

ललाट शोभित चानन गला पहिर कंठी माला
भीतर भीतर किएक गला कटै छै सब लोक

सधुवा मनुखक जीवन भगेल अछि बेहाल
कदम कदम पर जाल बुनैत छै सब लोक

अप्पन ख़ुशी में ओतेक ख़ुशी कहाँ होए छै कियो
जतेक आनक दुःख में ख़ुशी होए छै सब लोक

अप्पन दुःख में ओतेक दुखी कहाँ होए छै कियो
जतेक आनक ख़ुशी में दुखी होए छै सब लोक

अप्पन जिन्गीक चिंतन मनन कियो नै करेय
आनक कुचिष्टा में जीवन बिताबै छै सब लोक

विचित्र श्रृष्टिक महा विचित्र पात्र छै सब लोक
"प्रभात" के किएक कुदृष्टि सं देखै छै सब लोक
.....................वर्ण:-१८ ................
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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