गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

भेदभावों की चिंगारी @प्रभात राय भट्ट

भेदभावों की चिंगारी ने 
हमारे  पूर्वजों की आत्मा को जलाया था 
जलते हुए आत्माओं का अंगार बनके 
मै इस जहाँ में आया था
मेरे साथ भी वही हुवा 
जो न होना था !!
 
मैंने  उस दुःख दर्द को
बड़ी मुश्किल से झेला था
आप तो एक बार मरोगे
मै तो सौ बार मरा था !!
 
फिर मैंने मेरे सोये हुए
आत्मा को जगाया था
मेरी आत्मा मुझे
दुत्कार रही थी
मेरी आत्मा मुझे
ललकार रही थी
मेरी आत्मा मुझे से
चीत्कार रही थी !!
 
उठो जागो मांगो अपना अधिकार
मिटा दो भेदभावों की अहंकार
बनालो अपनी खुद का पहिचान
तेरा स्वाभिमान से बढ़कर
इस जहाँ में कुछ और तो नहीं!!
 
जरा याद करो
स्वाभिमानी युग पुरुष को
तेरा पहिचान बनाने की खातिर
रघुनाथ ठाकुर चढ़ें थे वलिदान
दुर्गानन्द झा ने भी दी थी कुर्वानी
गजू बाबु की क्या कहना
उन्होंने ही तो बचा राखी थी
हम सबों की पहिचान !!
 
रमेश मंडल की आहुति से
हुवा था युगांतकारी संग्राम
मधेश आन्दोलन को
मिली था एक नयी आयाम !!
 
हमारे बाजुवों में भी वह ताकत है
हम बदल देंगे
अपनी हाथो की लकीरों को
तोड़ देंगे गुलामी की जंजीरों को   !!
 
आओ मेरे जिगर वाले भाइयों
अपना मंजिल
अपना यासियाना बनातें है
हम सब मिलके 
स्वतंत्रता की गीत गातें है
एक मधेश एक प्रदेश  बनाते है  
मातृभूमि को स्वतंत्र करके
पुत्र धर्म निभाते है !!
जय मधेश !! जय मधेश !! जय मधेश !!
 
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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