रविवार, 27 मई 2012

Alliance for Independent Madhesh (AIM): Independence of Madhesh through Peaceful Means
GandhiMandela
गान्धी ने किया, मण्डेला ने किया और हम भी कर रहे हैंहम कोई गलत नहीं कर रहे हैं। आइए, गठबन्धन में सामेल होकर मधेश को आजाद करें, नेपाली उपनिवेश का अन्त्य करें, मधेशी विरूद्ध रंगभेद और भेदभाव को सदा के लिए खत्म करें, अपना अधिकार और आत्मसम्मान प्राप्त करें।
- डा. सी. के. राउत

स्वतन्त्र मधेश के प्रस्तावित झंडा और राष्ट्रगान
Independent Madhesh Flag
झंडा का अर्थ: (लाल रंग - हमारे बलिदान, हरा रंग - मधेश, उजला रंग - शान्ति, कमल फूल - समृद्धि)
चारों ओर से हमारे बलिदानों से संरक्षित मधेश में सदा शान्ति और समृद्धि कायम रहे ।
मधेश के राष्ट्रगान
कोशी कमला गण्डक काली
जनक सीता बुद्ध धारी
अनन्त उर्वर मधेश जय

सहस्र तलाव सरस मृणाली
सुलभ समृद्ध सतत हरियाली
मनोरम महान मधेश जय

परित्राता परिपालक परमभवशाली
अजित अधिप आभा भारी
मेधावी महारथी मधेश जय

जय जय जय मधेश जय
जय जय जय मधेश जय
नारा:
स्वतन्त्र मधेश, अपना देश!

आजादी चाहते हैं हम,
उससे कुछ भी नहीं कम!

नेपाली उपनिवेश, अन्त हो!
मधेश अब स्वतन्त्र हो!

रंगभेद और गुलामी, मूर्दावाद!
मधेशी एकता, जिन्दावाद!
स्वतन्त्र मधेश ही क्यों?

मानव सभ्यता के प्रारम्भ से ही मधेश (मध्यदेश) राष्ट्र का अस्तित्व रहा है। वेद, पुराण और प्राचीन ग्रन्थों में मध्यदेश की चर्चा और विवरण बराबर मिलती है। वैवश्वत मनु के बेटा इक्ष्वाकु मध्यदेश के प्रथम राजा माने जाते हैं। उसके ३४ पिढी बाद भगवान राम और माता सीता ने मध्यदेश को धन्य किया था। भगवान बुद्ध भी ई. पु. ५६३ में मधेश (मज्झिमदेश) में ही जन्म लेकर इस भूमि को धन्य किया। उनके समय में मधेश विशाल था, और मधेश की सीमाओं का विवरण विनय पिटक जैसे ग्रन्थों मे विस्तार से दिया गया है। सम्राट अशोक से लेकर राजा सलहेश तक, अनेकौं गौरवशाली राजा-महाराजों ने इस भूमि पर राज्य किया। बारहवीं शताब्दी के आसपास मूस्लिम शासक यहाँ पर आए, और उसके बाद ब्रिटिश लोग। गोर्खाली ने अठारबीं शताब्दी में मधेश पर हमला किया, उस समय मधेश में सेन राजाओं का राज्य था। गोर्खालीयों ने अनेक छल-कपट किए, क्रूर-बर्बरता दिखाए, फिर भी मधेश पर कब्जा नहीं जमा सके। लेकिन ब्रिटिश ने कोशी से राप्ती बीच की मधेश की भूमि सन् १८१६ में उपभोग करने के लिए नेपाल सरकार को दे दिया, और उसी तरह सन् १८६० मे राप्ती से महाकाली बीच की मधेश की भूमि ब्रिटिश ने उपहार स्वरूप नेपाल सरकार को दे दिया। इस तरह से मधेश नेपाल के उपनिवेश बन गए। और शुरू से ही नेपाल सरकार मधेशीयों की जमीन हडपने और मधेशीयों को अपनी ही भूमि से भगाने में लगे रहे, मधेशीयों के साथ युद्धबन्दी सरह व्यवहार करते हुए गुलाम बनाने में लगे रहे।

मधेशीयों के उपर लादे गए उपनिवेश और गुलामी और उनके साथ किए जा रहे भेदभाव और रंगभेद अब छिपी नहीं हैं। इन सबसे मुक्ति के लिए मधेशीयों ने वर्षों से संघर्ष किया है, यहाँ तक कि महान मधेश आन्दोलन भी किया, ५४ से अधिक शहीद हुए, हजारों-हजार घायल हुए, लाखों ने अपना योगदान दिया। परन्तु इतने संघर्ष के बाद भी, इतने मधेशीयों के बलिदान और खून के बाद भी क्या परिवर्तन आए हैं? सुधरने के बदले, नेपाल के शासक तो उल्टा रूख पकडे हुए हैं। सम्झौते के मुताबिक हमें अधिकार देने के बदले, ये लोग हमारे अधिकार छिनने में लग गए। रंगभेद और भेदभाव खत्म करने के बदले, हमें और भी शिकार बनाते गए। मधेशीयों को नागरिकता देने के बजाए नागरिकता छिनने में लग गए; एक पर एक नागरिकता विधेयक लाकर ये लोग मधेशीयों को अनागरिक बनाने में लग गए। जो मधेशी कई दशकों से अपना भोट देते रहे हैं, उसका भी मतदान अधिकार इन्होंने छीन लिया, उनको भोटर लिस्ट से हटा दिया। विशेष सुरक्षा प्रणाली के नाम पर मधेश के निर्दोष लोगों को जेल में बन्द कर दिया, कितनों को दिनदहाडे बेबजह गोली मार दी गई। हमें दबाने के लिए सशस्त्र प्रहरी और सैनिक जगह-जगह पर लगा दिए गए हैं। मानव अधिकार संगठन बन्द करा दिए गए हैं। भाषा और भेषभूषा के मामले पर भी वही पुराने षड्यन्त्र करते रहे। मधेशी उपराष्ट्रपति को नेपाली बोलने और दौरा-सुरुवाल पहनने पर मजबूर करेके ही छोडा। हजारौं वर्ष से चलते आए सीमा आर-पार के हमारे सम्बन्धों को तोडने के लिए एक पर एक नियमकानून बनाते रहे, आज तो आप एक तौलिया लेकर भी आर-पार नहीं हो सकते। सेना में मधेशी की भर्ती और समावेशी की बात को धराशायी कर दिया गया। सम्झौता होने के बाबजूद हमारे नेता और पार्टीयाँ मधेशीयों को सेना में समानुपातिक प्रवेश तो क्या, ३००० मधेशीयों को भी प्रवेश नहीं करा सके, वश मजाक बनकर रह गया। हर क्षेत्र में मधेशी का कोटा पहाडी ले जा रहा है। नेपाल की मिडिया मधेश-विरोधी अभियान में संगठित हो गए और मधेश को बदनाम करते रहे, मधेशी की आवाज को दबाते रहे हैं। सम्झौता कर चुके ‘स्वायत्त मधेश प्रदेश’ देने के बजाए मधेश को खण्ड-खण्ड बनाने के लिए एक पर एक षड्यन्त्र करते रहे, हमें तोडेने का अनेक षड्यन्त्र करते रहे। पहाडी लोग कभी चुरे-भाँवर तो कभी अखण्ड सुदुरपश्चिम के नाम पर हमारी जमीन पर कब्जा जमाए रखना चाहते हैं, अपनी विरासत बनाए रखना चाहते हैं। हमें कभी थारू, कभी मूस्लिम, तो कभी जनजाति के नाम पर शासक लोग फुट डालना चाहते हैं, पर हम पुछते हैं, ऋतिक रोशन या नेपालगंज जैसे कांडो में थारू या जनजाति कहने पर पहाडीयों ने मारना छोड दिया था? मूस्लिम कहने पर पहाडियों ने आक्रमण नहीं किया था? घर में आग नहीं लगाई थी? माँ-बहन की इज्जत नहीं लुटी थी? काठमाण्डू में मस्जिद नहीं जलाई थी? सच तो यह है कि पहाडियों के अत्याचार से थारू हो या मूस्लिम या जनजाति, सभी मधेशी तडप रहे हैं। पूर्व में सुनसरी के शहीद परिवार हो, या सप्तरी-सिरहा-धनुषा के दलित, या पश्चिम में कंचनपुर जिल्ला के भूमिहीन हो या दांग के थारू कमैया या वीरगंज-नेपालगंज के हमारे मूस्लिम भाइ-बहन, सब की दुर्दशा है।

नेपाल को इतना पैसा मिलता है अनुदान में, इतने प्रोजेक्ट आते हैं, इतने का बज़ट बनता है, लेकिन सब पहाड चला जाता है। मधेशीयों को क्या मिलता है? पहाड में एक पर एक स्वर्ण-नगरी स्थापित किया जाता है, एक पर एक रोड, एयरपोर्ट, सरकारी कार्यालय, अस्पताल, स्कूल-कलेज, फैक्ट्री बनाए जाते हैं, इन्टरनेट की अत्याधुनिक सुविधाएँ है, ल्यापटप बाँटा जाता है, मधेश में क्या होता है? मधेश मे कुछ खुलने नहीं देता है, जो भी फैक्ट्री, सरकारी अफिस, कलेज या अस्पताल था, जो भी प्रोजेक्ट चल रहे थे, उसे बन्द करा दिया गया, उसे पहाड के तरफ लेकर चले गए। किसान को खाद और बीज तक नहीं मिलता, सरकार सिंचाइ की कोई व्यवस्था नहीं करती, किसान की कोई भी समस्या को सरकार नहीं देखती। मधेश में व्यापारी को अनावश्यक दु:ख दिया जाता है, निरूत्साहित किया जाता है। एक से एक बेहतरीन मधेशी युवा पढकर बेरोजगार बैठे हैं, सरकार उन्हें काम नहीं देती। नेपाल सरकार ने तो मधेशीयों को काम नहीं दिया, लेकिन अपने खून-पसीनों से अरब-मलेशिया, दिल्ली-पंजाब से भी जो हम कमाकर लाते हैं, मेहनत-मजदूरी करके यहीं पर भी जो कमाते हैं, उसका भी लगभग दो-तिहाई सरकार हमसे छीन लेती है। कैसे? कर के नाम पर। जिस मोटरसाइकल का दाम पचास हजार है, उसे हमें नेपाल सरकार डेढ़ लाख में खरीदने पर मजबूर करती है, यानि सरकार हमसे एक लाख छीन लेती है! जिस नानो गाडी का दाम दो लाख नेपाली रूपैयाँ है, उसे हमें नौ लाख में खरीदने पर मजबूर करती है, यानि हमारे मेहनत-मजदूरी का सात लाख नेपाल सरकार छीन लेती है! इसी तरह, पैसा तो हम कुछ न कुछ खरीदने में ही खर्च करते हैं, और सरकार मेहनत-मजदूरी से कमाए हुए हमारे पैसौं के अधिकांश हिस्सा हमसे छीन लेती है। और बदले में हमें क्या मिलता है? गोली और गुलामी। हमारे पैसौं से नेपाली शासक बन्दुक खरीदते हैं, गोली खरीदते हैं, और शसस्त्र प्रहरी और सैनिक हमारे उपर छोड देते हैं। आज जगह-जगह पर मधेशीयों को दबाने के लिए हजारों-हजार सशस्त्र प्रहरी और सैनिक तैनाथ किए गए हैं, वे पग-पग पर हमें सता रहे हैं, नेपाली उपनिवेश लाद रहे हैं, हमारी माँ-बहन की इज्जत लुट रहें है, हम पर एक पर एक अत्याचार किए जा रहे हैं।

मधेशीयों ने अपना अधिक से अधिक मत देकर मधेशी नेताओं को संसद भेजा, जितने सीट वे लोग सोच भी नहीं सकते थे उससे ज्यादा सीट पर नेताओं को पहुँचाया। लेकिन राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उपप्रधानमन्त्री, रक्षामन्त्री, गृहमन्त्री लगायत के मन्त्री परिषद् में मधेशी मन्त्रियों का बहुमत रहते हुए भी वे लोग मधेशी के लिए कुछ भी नहीं कर सके, बल्कि मधेशीयों का अधिकार खोते रहे हैं। यह प्रमाण है कि नेपाल के अन्दर रहते हुए हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते। मधेशी अफिसर, नेता, मन्त्री, उपप्रधानमन्त्री या राष्ट्रपति को तो एक पहाडी प्यून या ड्राइभर भी नहीं ‘टेरता’ है, तो ये क्या परिवर्तन लाएँगे? सेना को ‘धोती’ रक्षा-मन्त्री स्वीकार्य नहीं, तो सेना क्या मधेशी मन्त्री को ‘टेरेंगे’?

नेपाल के अन्दर रहते हुए कोई राजनैतिक परिवर्तन मधेशीयों के जीवन मे कुछ बदलाव ला न सका, और न ही ला सकेगा। पुराने तरीके, पुरानी माँगे बर्षो-वर्ष अब पचकर-सडकर ‘मल’ बनकर निकल चुकी है, और हम देख चुके हैं कि उससे मधेशीयों को कभी कुछ पोषण नहीं मिला। लेकिन हमारे नेतालोग संसद और सरकार मे जाने के लालच से वही पचकर-सडकर निकले हुए ‘मल’ फिर से मधेशीयों को खिलाने की कोशिस कर रहे हैं। लेकिन मधेशी जनता वही ‘मल’ खाएगी? हरगिज नहीं। मधेशी जनता तो अब नई राह पर, नए लक्ष्य की ओर चलेगी; अपनी और मधेश की स्वतन्त्रता के लिए आगे बढेगी।

क्या कोई और व्यवस्था मधेश की अखण्डता की ग्यारेन्टी करती है? नेपाली शासक तो हमें तोडने में लगे हैं, हमें लडाने में लगे हैं। क्या कोई और व्यवस्था मधेशीयों की जमीन नहीं छिनने की और पहाडीयों को मधेश में बसाने का षड्यन्त्र नहीं होने देने की ग्यारेन्टी करती है? अगर नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब और जिल्ला भी झापा या चितवन की तरह पूरी तरह से पहाडीयों से भर जाएगा, और मधेशी केवल उनके दास बन कर रह जाएँगे। क्या कोई और व्यवस्था मधेश में सिडियो, एसपी लगायत के सभी प्रशासक मधेशी होने की ग्यारेन्टी करती है? नहीं तो पहाडी शासक हम पर कर्फ्यू लगाकर आक्रमण करता रहेगा, शोषण करता रहेगा। क्या कोई और व्यवस्था ऋतिक रोशन कांड र नेपालगंज घटना जैसे षड्यन्त्र कराके मधेशीयों पे आक्रमण और लुटपाट नहीं होने की ग्यारेन्टी करती है? पहाडी द्वारा मधेशीयों के घर और गाँव नहीं जलाने की ग्यारेन्टी करती है? मधेश के कामकाज और नौकरियाँ मधेशीयों को ही मिलने की ग्यारेन्टी करती है? क्या मधेश की आय के सम्पूर्ण भाग और वैदेशिक अनुदान और प्रोजेक्ट के आधे हिस्से मधेश को मिलने की ग्यारेन्टी करती है? क्या देश भितर और बाहर रहे मधेशीयों की पहचान और आत्मसम्मान की समस्या को हल करती है? क्या हमारी राष्ट्रियता पर शक नहीं किया जाएगा, हमसे नागरिकता नहीं माँगा जाएगा, हमसे ‘नेपाली हो र? नेपाली जस्तो देखिनुहुन्न’ नहीं कहा जाएगा? क्या कोई और व्यवस्था मधेश से सम्पूर्ण पहाडी सेना वापस करने की ग्यारेन्टी करती है? सम्पूर्ण पहाडी प्रहरी और सशस्त्र प्रहरी फिर्ता लेने की ग्यारेन्टी करती है? नहीं तो नेपाली शासकलोग जब चाहे हम पर गोली चलाकर राज करता रहेगा, जो भी नियम-कानून और संविधान बनाकर हम पर लादता रहेगा, केन्द्रिय सरकार आपत्‌कालीन स्थिति घोषणा करके मिनट भर में हमारे सारे अधिकार छीन सकती है। और हमें, हमारी माँ-बहन को, इन पहाडी सैनिक और पुलिस के खौफ में सदा की तरह जीना पडेगा। यानि कि, परम्परागत तरीकों से इनमें से हमें कुछ भी नहीं मिल सकता। ये सब चीज स्वतन्त्र मधेश में ही प्राप्त हो सकती है, मधेश आजाद होने से ही मिल सकती है।

स्वतन्त्र मधेश के बनने से हमारा एक देश होगा, हमारी पहचान होगी जो मधेशी की संस्कृति, भाषा, रहन-सहन को समेटेगी, और कोई भी हमारी पहचान के उपर सवाल नहीं करेगा। कभी नागरिकता-पासपोर्ट लेने मे दिक्कत नहीं होगी, किसी को भी नागरिकता के अधिकार से वंचित नहीं होना पडेगा। स्वतन्त्र मधेश में लाखों मधेशी युवा मधेशी सेना मे प्रवेश करेगा, लाखों-लाख पुलिस में प्रवेश करेगी, लाखों-लाख प्रशासक बनेगी, और लाखों-लाख मधेशीयों को नौकरी मिलेगी, बेरोजगारी हटेगी। हम मधेश का विकास खुद कर सकेंगे । बोर्डर के सम्बन्ध को सहज करते हुए किसानों को खाद, बीज, तेल-डिजल, थ्रेसर, पम्पिनसेट आदि सहज रूप से लाने दिया जाएगा, उनके लिए बाजार खुला रहेगा। मेशिन, मोटरसाइकल, ट्रयाक्टर जैसी चीजों पर से कर हटा दिया जाएगा, जिससे वे चीज बोर्डर के पार के दामों में ही मिल जाएगी। हम क्यों नेपाल सरकार को लाखों-लाख कर बेवजह देते रहें? जो मोटरसाइकिल आज डेढ लाख में मिलती है, वह चालीस-पचास हजार में मिलने लगेगी, जो नानो गाड़ी आज नेपाल में नौ लाख मे मिलती है, वह डेढ-दो लाख मे मिलने लगेगी। सीमा-क्षेत्र से नेपाली शासक के सशस्त्र पुलिस और सैनिक का अत्याचार हटा दिया जाएगा, और बोर्डर क्षेत्र में आवत-जावत और व्यापारों को हम मधेशी अनुकुल सहज बनाएँगे। किसान लोगों के लिए, खेती के लिए सिंचाइ, सुलभ ऋण सहयोग, बोरिङ्ग और उन्नत बीज की व्यवस्था की जाएगी। गरीबों को राशन कार्ड मिलेगा; खाना, कपडा और बास की उचित व्यवस्था की जाएगी। मधेश में एक पर एक रोजगार और प्रोजेक्ट आएँगे, फैक्टरी खुलेगी, सड़क बनेगी, पुल, एयरपोर्ट, अस्पताल, स्कूल-कलेज, लाइब्रेरी बनेंगे। स्वदेश में ही सभी को रोजगार प्राप्त होंगे, लेकिन वैदेशिक रोजगार पर जाने चाहने वालों को भी सुलभ ऋण (जो वापस न कर सकने वालों के लिए मिनाहा कर दिया जाएगा) और विदेश में सुरक्षा की व्यवस्था किया जाएगा। हमें हर गुलामी से मुक्ति मिलेगी, आत्मसम्मान होगा । ईसलिए यह जरूरी है कि हम स्वतन्त्र मधेश के लिए संघर्ष करें।

हमारे बाप-दादा नहीं लडे, और हम गुलाम हुए। आज हम नहीं लडेंगे, हमारे बच्चे गुलाम होंगे। क्या हम अपने बच्चों को गुलामी देना चाहेंगे, ऋतिक रोशन और नेपालगंज जैसे कांडो में मरने के लिए छोडना चाहेंगे, भेदभाव और रंगभेद का शिकार होने के लिए छोडना चाहेंगे? आज हम नहीं लडे, आज हम चुप बैठे रहे, तो शासकवर्ग हमारे अस्तित्व को ही मिटा डालेंगे। हमारे अधिकार ही नहीं छिनेंगे, हमारे नामोनिशान को मिटा देंगे।

और ऐसी सरकार जो अपना सैनिक और सशस्त्र पुलिस लगाकर हमें कुचल देना चाहती हो, उसके आगे बारबार भिखारी की तरह हात फैलाने का औचित्य क्या है? मधेश तो केवल लगभग दो सौ वर्ष पहले नेपाल मे आए थे, तो नेपाल में दास बनकर सब दिन रहने की जरूरत क्या है? मधेशीयों को तो सन् १९५८ तक काठमाण्डू जाने के लिए भी भिसा लेना पडता था, और मधेश का नेपाल से पृथक अस्तित्व था। नेपाल सरकार ने तो झूठ बोलकर संयुक्त राष्ट्रसंघ का सदस्यता ले लिया, और मधेश को खा गया। हमें मधेश की वह स्वतन्त्रता वापस करनी है, न कि छोटी-छोटी चीज भीख में माँगनी है। हम कितनी बार एक ही चीज के लिए लडते रहें? कितनी बार हम एक ही चीज के लिए मरते रहें? कितनी बार वही सम्झौते करते रहें, जो केवल कागज पर ही सीमित रह जाता है? इस लिए बारबार नेपाली शासकों की गोली खाने के बजाय, एक ही बार अन्तिम संघर्ष करना है जो मधेश और मधेशीयों को स्वतन्त्र कर दे, हमें गुलामी से आजाद कर दे, नेपाली शासक के सभी षडयन्त्रों को सदा के लिए खत्म कर दे। एक निर्णायक संघर्ष, स्थायी स्वतन्त्रता और अधिकार के लिए। इसलिए, कौन नेता कहाँ वार्ता करता है, यानि हमें और हमारे खून का सौदा करता है, इसकी परबाह नहीं करते हुए, हमें तब तक संघर्ष करना है जब तक हम स्वतन्त्र न हो जाएँ । किसीके कहने पर हम ना रूकें, वश खुद से पुछें कि ‘क्या हम आजाद हो गए, मधेश आजाद हो गया?’ और जब तक ‘हाँ’ मे जवाफ नहीं मिल जाता तब तक हमें रुकना नहीं है। यह स्वतन्त्रता संग्राम मन्त्री, प्रधानमन्त्री या सांसद् बनने के लिए नहीं है, हम उस पुरानी दिशा की ओर जाना ही नहीं चाहते हैं क्योंकि उस तरफ जाने वाला हर कोई गद्दार है, मन्त्री और सांसद् बनने के लालची है। हम तो आजादी चाहते हैं, जो मधेश आजाद होने पर सबको प्राप्त होगी।

हमारी माँगे:

(१) मधेश को स्वतन्त्र घोषणा कर तुरन्त मधेश सरकार की गठन किया जाए जो राज्य व्यवस्थापन की, सत्ता हस्तान्तरण की, आमनिर्वाचन कराने की, और संविधान बनाने की भूमिका खेलेगी। (२) मधेश से नेपाली प्रशासक और शासन संयन्त्र को वापस लिया जाए । (३) मधेश से सम्पूर्ण नेपाली सेना हटाकर मधेशी सेना की अबिलम्ब गठन किया जाए। (४) मधेश से नेपाल प्रहरी और सशस्त्र प्रहरी बल हटाकर उनमें से मधेशीयों को चुनकर मधेश प्रहरी की अबिलम्ब गठन किया जाए। (५) मधेश से सम्पूर्ण कर और राजस्व वसूली हटाया जाए। (६) मधेशीयों से छिनी गई जमीन वापस किया जाए और उसे भूमिहीन और गरीब मधेशीयों में बाटा जाए। (७) मधेश के साधन-श्रोत, जल, जमीन और जंगल पर से नेपाल सरकार के आधिपत्य हटाया जाए। (८) मधेश में संयुक्त राष्ट्रसंघ लगायत विश्व के राष्ट्रो के प्रतिनिधी रखने लिए आवश्यक प्रक्रिया आगे बढाया जाए।

हमारी योजना:

(१) स्वतन्त्र मधेश के लिए आवश्यक जनशक्ति और पूर्वाधार निर्माण करना; जिल्ला-जिल्ला में, गाम-गाम में, वार्ड-वार्ड में जाकर सुदृढ प्रशासनिक एवम् भौतिक संरचना निर्माण करना; मधेश सरकार के लिए आवश्यक प्रशासक, सेना और पुलिस बनाना; राष्ट्रिय योजना आयोग, थिंक ट्याङ्क, मिडिया हाउस, राष्ट्रिय समाचार पत्र, रेडियो और टेलिभिजन जैसे पूर्वाधार निर्माण करना, (२) भारत, चीन, अमेरिका और बेलायत लगायत के देशों के संसद् में मधेश के ककस निर्माण करना, और वहाँ के संसदों में मधेश के लिए समर्थन जुटाना, (३) मधेश सरकार की गठन और मधेश राष्ट्र को व्यवस्थापन और संस्थागत करना, लोकतान्त्रिक पद्धति और संरचना को स्थापित करना, (४) मधेश की नागरिकता व पासपोर्ट जारी करना, (५) संयुक्त राष्ट्रसंघ में मधेश को दर्ता कराना और अन्तर्राष्ट्रिय जगत में मधेश को स्थापित करना, (६) विश्व के अन्य राष्ट्रों से द्विपक्षीय और विश्व बैंक और एशियाली विकास बैंक जैसे अन्तर्राष्ट्रिय संघ-संस्थाओं से वहुपक्षीय कुटनैतिक सम्बन्ध स्थापित करना, उनके नियोग मधेश में खुलवाना और साथ में उनके देश में मधेश राजदूतावास स्थापित करना, (७) सन् १९५० की भारत-नेपाल संधि से मिले हमारे अधिकारों को पुन:प्राप्त करना और उसके तहत भारत में मधेशीयों को विशेषाधिकार दिलवाना, (८) संयुक्त राष्ट्रसंघ ने जो गलत आधार पर नेपाल को सदस्यता दे दिया, और नेपाल ने जो हमारे साथ रंगभेद और जातीय भेदभाव किया, मधेशीयों का नरसंहार किया, उसके लिए इन्टरनेशनल कोर्ट अफ जस्टिस में आवाज उठाकर कारबाही और क्षतिपूर्ती की माँग करना; शहीद और घायल तथा राज्य द्वारा पिडित पक्षों के परिवार को आजीवन राहत और सुरक्षा की व्यवस्था करवाना, (९) अन्तर्राष्ट्रिय स्तर पर मधेशीयों का संगठन विस्तार करना, मधेश और मधेशी सम्बन्ध में अन्तर्राष्ट्रिय स्तर पर जन-चेतना फैलाना।

स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन क्या है?

स्वतन्त्र मधेश गठ़बन्धन मधेश की स्वतन्त्रता और मधेशियों के अधिकार के लिए कार्यरत सम्पूर्ण मधेशी जनता, कार्यकर्ता, पार्टी और विभिन्न संघ-संगठन का एक साझा गठबन्धन है। जिस तरह गांधी और मंडेला ने अपने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया था और अन्तत: आजाद किया था, उसी तरह शांतिपूर्ण और अहिंषात्मक रास्ते से चलते हुए मधेश की आजादी और मधेशीयों के अधिकार हासिल करना हमारा लक्ष्य है। मधेश में हम नेपाली उपनिवेश का अंत चाहते हैं, मधेशी उपर लादी गई दासता, रंगभेद, और भेदभाव को सदा के लिए खत्म करना चाहते हैं, और मधेश की अपनी लोकतान्त्रिक शासन-व्यवस्था लाना चाहते हैं।

गठबन्धन का नेतृत्व कौन करता है?

गठबन्धन का नेतृत्व डा. सी. के. राउत करते हैं। मधेश में पैदा हुए और पले-बडे डा. राउत बेलायत के क्यामब्रिज यूनिवर्सिटी से पिएच.डी. किए हुए हैं। वे अमेरिका में वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत थे, लेकिन सन् २०११ में इस्तीफा देकर वे मधेश की सेवा करने वापस लौट आए। वे मधेशी हक-हितके लिए अन्तर्राष्ट्रिय स्तर पर काम करेनी वाली संस्था गैर-आवासीय मधेशी संघ के संस्थापक अध्यक्ष भी रहे हैं। वे युवा इन्जिनियर पुरस्कार, महेन्द्र विद्याभूषण, कुलरत्न गोल्डमेडल, ट्रफिमेन्‌कफ् एकाडेमिक एचिभमेन्ट अवार्ड जैसे सम्मानों से विभूषित हैं। विस्तृत जानकारी एवम् ‘स्वतन्त्र मधेश ही क्यों?’ जानने के लिए डा. सी. के. राउत द्वारा लिखी गई किताब ‘वैरागदेखि बचावसम्म’ देखें, या उनके वेबसाइट http://ckraut.com देखें ।

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