गुरुवार, 2 जून 2011

एतेक चंचल तू किये@प्रभात राय भट्ट

एतेक चंचल तू किये
भेले रे मनमा,
भभर में हम फसल छि
तोहरे करनमा,
हमरा जे नै भावे 
ओतह करेछे  तू परिक्रमा ,
कह कोना हेतई
हमरो दिन सुदिनमा,
राईत दिन साझ सबेरे
रहैछे तू अपने फेरे,
निक बेजाई किछु नै सोचे
मस्त रहैछे तू अनेरे,
जालमे तोरा फसलछि
केने छे तू केहन काबू,
कियो जाईन नए सकल
रे मनमा तोहर जादू,
क जाईत छे तू एहन काम,
भ ज्यात छि हम बदनाम,
सूक्षम अतिसूक्षम रूप तोहर,
कियो देख नै सकैय तोरा,
निक काज में प्रसंसा
बेजाय में उलहन परे मोरा,
हम तारा स दूर दूर भागी,
मुदा साथ नए छोड़े तोहर छाया,
हमरा काया के भीतर,
पसरल छौ तोहर महामाया,
रे मनमा कोना हम समझाऊ,
तू हवा स तेज बुझाइतछें,
जते हम सम्झाबी तोरा,
ओत्बें तू बहकल जाईछें,
क्षण में महल माकन बनबैछे,
होस अबैत सभटा गिरबैछे,
कखनो राजा कखनो रंक,
कखनो जोगी कखनो भोगी,
हम तोहर की तू हमर ??

रचनाकार:प्रभात राय भट्ट





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

b