गुरुवार, 16 जून 2011

एकटा उड़नखटोला कक्का छै@प्रभात राय भट्ट



एकटा उड़नखटोला कक्का छै,
सकल्सुरत स भोलाभाला, 
मुदा एकनंबर उचका छै,
सत्य कहैत हुनका बड तित लगैय,
झूठ बोलैत बड मीठ लगैय,
भीतर स छैथ ओ बिलकुल खाली,
झूठमुठमें हैंस हैंस क मारैय ताली,
घरमें छथि दू दुगो घरवाली,
मुदा हुनका मोन परैय छोटकी साली,
धुवा धोती में लगाबैय टिनोपाल,
सिल्क कुरता पैर छीट लालेलाल,
कान्हा पैर रखैय मखमल के रुमाल,
अजब गजब छै हुनक चालढाल,
सुइत उईठ भोरे भोरे करैया मधुपान,
गप मारी मारी खाय पिबैय चायपान,
चाहे दिन भैर हुनका भेटे नै जलपान ,
मुदा सैद्खन मस्त रहैय करैमे धुम्रपान,
झुठमुठ क करैया ओ रोजगारी,
चौक चौराहा बैठ क मारैय पिहकारी,

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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