गुरुवार, 10 नवंबर 2011

जरा दिल से मुश्कुरादेना@प्रभात राय भट्ट

मैं एक पंक्षी हूँ मेरा नहीं एक ठेगाना
आज यहाँ हूँ कल कहीं और हैं जाना
सारे कश्मे सारे वादें आज हैं निभाना
कल कहाँ जाना हैं ये मैंने भी नहीं जाना

कैद हूँ तेरे पिजरें में तू समझती है मैं हु तेरा
पिजड़ा खुल गयी तो पंक्षी डालेगा कही और बसेरा
मैं तुझसे जुदा होजाऊंगा  बस  रह जायेगा याद मेरा
पल दो पल में भूल जाओगी जब आएगी नया सबेरा

मैं उड़ता पंक्षी हूँ कल और कहीं है जाना
आज तो मैं सिर्फ तेरा हूँ कल होजाऊंगा बेगाना
खुदको भुलाकर मुझमें इतना दिल मत लगाना
मुझको जाने से  मुश्किल न हो जाये तेरा जीना 

मेरी यादों में युही साडी जिन्दगी न गुजार देना
जो मिले तुम्हे नयी पंक्षी उसे अपनालेना
गुजरे हुए कल की सारे यादें दिल से भुलादेना
मेरे अंतिम घडिमे जरा दिल से मुश्कुरादेना

रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट


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