सोमवार, 7 नवंबर 2011

नेता जी नेता जी@प्रभात राय भट्ट

नेता जी नेता जी
आपने जो भी सोचा है
आपके उस हरेक बातोंमें
ढेर शारी लोचा है
आपकी कुर्सी के चकरमें
बंद हड़ताल होता है
कभी आपने सोचा है 
गरीबों की दिल क्यूँ रोता है
जाके पूछों उन
मजदूरी करनेवाले गरीबों से
जो त्रस्त है
ईस बंद और हड़तालों से
आपके घर तो बैठे बैठे
चौरासी ब्यंजन आजाते हैं
जाके देखो उन गरीबों की घर में
जिनकी पेट तो जलजाते है
पर चूल्हा नहीं जलपाते है
एक एक दाना की
मोहताज ओ होजाते है
जव बंद हड़तालों में
गरीब बेरोजगार होजाते है
नारा जुलुस तो कभी
विजय उत्सब आप मनाते है
विपदा की घडी तब आती है
जब भूख से गरीब मरजाते है
उसके घर तो आप
मातम मानाने भी नहीं आते है
जनता की मत से
आप मंत्री बन जाते है
उन्ही जनता को बर्बाद करके
खुद आबाद हो जाते है
भूख से जब गरीब
जनता की जनाजा उठती है
तो आप क्रूर शाषक और  
जलाद भी कहलाते है
नेता जी नेता जी
आपने जो भी सोचा है
आपके उस हरेक बातोंमें
ढेर शारी लोचा है
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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