शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

मैं तो वह दीपक हूँ@प्रभात राय भट्ट

मेरे दुःख पर तुझे हंसी आता है
तो जी भर के मुस्कुराले  
मेरे आँखों की आंसू से
तुझे ख़ुशी मिलता है
तो जी भर के खुशियाँ मनाले
मेरे खुशी पर तुझे जलन होता है
तो ये खुशियाँ भी लेले
मेरे हंसी पर तुझे मरण होता है
तो मेरे होठों की हंसी भी लेले
मैंने हमेशा तेरा खुशी चाहा है
तेरे घर की खुशियाँ से
मेरा घर महक उठेगा
तेरे होंठो की हंसी से
मेरा मन चहक उठेगा
मैंने तो सिर्फ तेरा ही
ख़ुशी को अपना खुशी माना है
मैं तो वह दीपक हूँ
जो औरों को प्रकाश देता हूँ
खुदके तले अँधेरा रखता हूँ
मैं तो सुबह का सुनेहरा प्रभात हूँ
सीतलता और उजाल्ला का प्रतीत कराता हूँ
जीवन अन्तर्निहित उषामें विलीन हो जाता हूँ
रोज रोज की तरह फिर प्रभातकालीन
सुनेहरा समय लेके आता हूँ //
रचनाकार:-प्रभात राय भट्ट

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