रविवार, 30 जनवरी 2011

भूखे पेट में विलाई ओघरैय@प्रभात राय भट्ट



राती नई खेलों हम आ सूती रहलौ सांझे !!

सूत उठ भोरे रोटी खोज्लौ,

खाली हरिया वर्तन हरबराईय,

की भूखे पेट में विलाई ओंघराईय

रोटी जे नै रखले म्या गई

भल तू रहिते बांझे,

राती नै खेलौ हम ,

आ सूती रहलौ सांझे

तोरा लागैनैछौ माया ,

भूख सा जरी रहल अछि हमार काया ,

की भूखे पेट में विलाई ओन्घराईय ,

उच्च कुल में जे जन्म लेतु ,

आ राज तिलाक हम कईर तौ ,

पैब तौ निक निक मेवा ,

आ काईर तौ देस क सेवा ,

की भूखे पेट में बिलाई ओघराईय !!

रचनाकार :प्रभात राय भट्ट



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