समय चक्र का मारा ईन्सान !!
कभी साहित्य से भरा हुवा था मेरा जीवन !!
पर आज मै एक कोरा कागज हुँ,
किस्मत ने ठुक्राया तो बद्किस्मति ने अपनाया !!
इसलिए मै आज पतझर कि तरह एक उजाड विराना हुँ ,
कभी हसरत और सोहरत ने दिया था मुझे उची पहचान !!
पर आज मेरे मन मे न कोइ तरंग है न कोइ उमंग है ,
सोचा था मै हु जिन्दगी और जिन्दगी का मै !!
पर जिन्दगी भी मुकड गई इस तरह कि आज कोइ भी न मेरे संग है !!
वक्त कि नजाक्त ने मुझे इस तरह मारा है,
कि आज कोइ भी नही मेरा सहारा है !!
अब तो गुमनाम होके जिने मे अछा लग्ने लगा है ,
इस लिए काँतर कि तरह गुम्नामी से नया रिस्ता जोड लिया हुँ !!
कभी दुनिया करता था मुझ पे भरोषा ,
पर आज खुद पे नही है मुझे भरोषा !!
गम्गिन जिन्दगी से मुझे अब कोइ सिकायत नही !!
इस लिए काँतर कि तरह नकामी से नया रिस्ता जोड लिया हुँ ,
कभी असमान छुलेने कि जज्वा था मुझ मे ,
गगन से जमी पे तारें उतार लाने कि होसला था मुझ मे !!
पर आज न कोइ हर्ष है न कोइ विषाद है ,
एक शुन्य कि भाँती जिता जागता लाश हुँ !!
हर अँधेरी रात के पिछे एक शु-प्रभात का सुन्दर सबेरा है !!
पर मेरे जीवन मे तो सिर्फ अन्धेरा हि अन्धेरा है !!
इस लिए आज मै एक अन्धों कि तरह !!
अन्धेरा से एक नया रिस्ता जोड लिया हुँ !!
कविता का रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट
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