सोमवार, 31 जनवरी 2011

तुम स्वयम जागो @प्रभात राय भट्ट


जागो रे युवा जागो खोल अपनी आँखे !!

अस्त हुयी कालरात्रि छाया है सुनहरा सबेरा !!
अपनी आहार की खोजी में निकल पड़ी पंक्षी छोड़ के अपना डेरा !!
जागो रे युवा जागो खोल अपनी आँखे !!
जगादो गहरी नींद में सोये समाज को !!
जगादो भोग में भुक्त सरकारको !!
जगादो देश की कर्मधार नव युवाको !!
जगादो सोये हुए भावनायों को !!
और तुम स्वयं जागो ,
--बसंत ऋतू में लहराता हरियाली ,
पर मुरझाई हुयी है पेड़ पौधों की डाली !!
क्यों की गहरी नींद में सो गया माली !!
तुम्हे समाज को मुरझाने से बचाना है !!
अपने वतन के लिए कुछ करके दिखाना है !!
-----तुम युवा ही देस की कर्मधार हो !!
विकाश और परिवर्तन की मुलभुत आधार हो !!
अपने कार्यकुशलता ,आत्म्वल पर रखो भरोषा !!
मंजिल तुझे मुक्म्बल होगी ,मन में रख ये अभिलाषा !!
तू कदम पे कदम बढ़ाते जा ,हम भी तेरा साथ देंगे !!
ठोकर कही लगे तुझे तो हम अपना हाथ देंगे !!
तुम जहा भी जाओ हम कलम कापी के साथ होंगे !!
परिवर्तन की ईतिहास में तेरा भी नाम लिखेंगे !!
नयुतन ,ग्यालिलियो ,अब्राहम, सुकरात,गाँधी ,
इन महामानव के साथ तुझे भी हम विराजमान करेंगे !!

रचनाकार :-प्रभात राय भट्ट

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